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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 1/ मन्त्र 60
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम्, रोहितः, आदित्यः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    यो य॒ज्ञस्य॑ प्र॒साध॑न॒स्तन्तु॑र्दे॒वेष्वात॑तः। तमाहु॑तमशीमहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । य॒ज्ञस्य॑ । प्र॒ऽसाध॑न: । तन्तु॑: । दे॒वेषु॑ । आऽत॑त: । तम् । आऽहु॑तम् । अ॒शी॒म॒हि॒ ॥१.६०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो यज्ञस्य प्रसाधनस्तन्तुर्देवेष्वाततः। तमाहुतमशीमहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । यज्ञस्य । प्रऽसाधन: । तन्तु: । देवेषु । आऽतत: । तम् । आऽहुतम् । अशीमहि ॥१.६०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 1; मन्त्र » 60

    भाषार्थ -
    (यज्ञस्य) जीवन-यज्ञ का (यः) जो (प्र साधनः) श्रेष्ठ साधनभूत, (तन्तुः) सूत्रात्मरूप परमेश्वर (देवेषु) प्रकाशमान सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, तारा आदि में (आततः) फैला हुआ है। (तम्) उस को, – (आहुतम्) जिस में कि हम ने आत्म-समर्पणरूपी आहुतियां दी हैं- (अशीमहि) हम प्राप्त हों। आहुतम् = अथवा जिस की आहुति हम ने निज आत्माओं में दी है उसे हम प्राप्त हों।

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