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  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 6/ मन्त्र 16
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - आसुरी बृहती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    सोऽना॑दिष्टां॒दिश॒मनु॒ व्यचलत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । अना॑दिष्टाम् । दिश॑म् । वि । अ॒च॒ल॒त् ॥६.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोऽनादिष्टांदिशमनु व्यचलत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । अनादिष्टाम् । दिशम् । वि । अचलत् ॥६.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 6; मन्त्र » 16

    भाषार्थ -
    (सः) वह व्रात्य-संन्यासी, (अनादिष्टाम्) अनिर्दिष्ट अर्थात् जिस की इयत्ता का निर्देश नहीं हो सकता, उस (दिशम्) दिश् अर्थात् उद्देश्य को (अनु) लक्ष्य कर के, (व्यचलत्) विशेषतया चला।

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