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अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 16/ मन्त्र 1
अ॑सप॒त्नं पु॒रस्ता॑त्प॒श्चान्नो॒ अभ॑यं कृतम्। स॑वि॒ता मा॑ दक्षिण॒त उ॑त्त॒रान्मा॑ शची॒पतिः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स॒प॒त्नम्। पु॒रस्ता॑त्। प॒श्चात्। नः॒। अभ॑यम्। कृ॒त॒म्। स॒वि॒ता। मा॒। द॒क्षि॒ण॒तः। उ॒त्त॒रात्। मा॒। शची॒ऽपतिः॑ ॥१६.१॥
स्वर रहित मन्त्र
असपत्नं पुरस्तात्पश्चान्नो अभयं कृतम्। सविता मा दक्षिणत उत्तरान्मा शचीपतिः ॥
स्वर रहित पद पाठअसपत्नम्। पुरस्तात्। पश्चात्। नः। अभयम्। कृतम्। सविता। मा। दक्षिणतः। उत्तरात्। मा। शचीऽपतिः ॥१६.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 16; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(नः) हमारा (सविता) राष्ट्र का प्रेरक राजा, तथा (शचीपतिः) राष्ट्र के ज्ञान-विज्ञान वाणियों और नानाविध कर्मों का अधिपति प्रधानमन्त्री (मा मा) मुझ प्रत्येक प्रजाजन को (पुरस्तात्) पूर्व से, (पश्चात्) पश्चिम से, (दक्षिणतः) दक्षिण से, (उत्तरात्) उत्तर से (असपत्नम्) (शत्रुरहित), तथा (अभयम्) भयरहित (कृतम्) करें।
टिप्पणी -
[कृतम्= कुरुतम् (सायण)। शचीपतिः= शची प्रज्ञानाम (निघं० ३।९); वाङ्नाम (निघं० १।११); कर्मनाम (निघं० २।१)। सविता=षू प्रेरणे।]