अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 49/ मन्त्र 10
सूक्त - गोपथः, भरद्वाजः
देवता - रात्रिः
छन्दः - त्र्यवसाना षट्पदा जगती
सूक्तम् - रात्रि सूक्त
प्र पा॑दौ॒ न यथाय॑ति॒ प्र हस्तौ॒ न यथाशि॑षत्। यो म॑लि॒म्लुरु॒पाय॑ति॒ स संपि॑ष्टो॒ अपा॑यति। अपा॑यति॒ स्वपा॑यति॒ शुष्के॑ स्था॒णावपा॑यति ॥
स्वर सहित पद पाठप्र। पादौ॑। न। यथा॑। अय॑ति। प्र। हस्तौ॑। न। यथा॑। अशि॑षत्। यः। म॒लि॒म्लुः। उ॒प॒ऽअय॑ति। सः। सम्ऽपि॑ष्टः। अप॑ ।अ॒य॒ति॒। अप॑। अ॒य॒ति॒। सु॒ऽअपा॑यति। शुष्के॑। स्था॒णौ। अप॑। अ॒य॒ति॒ ॥४९.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र पादौ न यथायति प्र हस्तौ न यथाशिषत्। यो मलिम्लुरुपायति स संपिष्टो अपायति। अपायति स्वपायति शुष्के स्थाणावपायति ॥
स्वर रहित पद पाठप्र। पादौ। न। यथा। अयति। प्र। हस्तौ। न। यथा। अशिषत्। यः। मलिम्लुः। उपऽअयति। सः। सम्ऽपिष्टः। अप ।अयति। अप। अयति। सुऽअपायति। शुष्के। स्थाणौ। अप। अयति ॥४९.१०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 49; मन्त्र » 10
भाषार्थ -
[रात्री चोर के] (पादौ) दोनों पैर (प्र हनत्) काट दे, (यथा) जिससे कि वह (न अयति) न चल सके। (हस्तौ) दोनों हाथ (प्रहनत्) काट दे, (यथा) जिससे कि वह (न आशिषत्) खा न सके। (यः) जो (मलिम्लुः=मलिम्लुचः) मलिनाचार वाला लुटेरा (उपायति) हमारे समीप आए, (सः) वह (संपिष्टः) मारपीट खाकर (अपायति) दूर चला जाय। (अपायति) दूर चला जाय (सु अपायति) बहुत दूर चला जाय। (शुष्के) सूखे (स्थाणौ) स्थावरों अर्थात् जङ्गल में (अपायति) चला जाय।
टिप्पणी -
[मन्त्र ९ में प्राणदण्ड का विधान है। मन्त्र १० में अङ्ग-भङ्ग का, तथा किसी सुदूर एकान्त और सूखे जङ्गल में कैदी के रूप में उसके अवरुद्ध करने का विधान है।]