अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 11/ मन्त्र 8
सूक्त - भृग्वङ्गिराः
देवता - इन्द्रः, अनड्वान्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - अनड्वान सूक्त
मध्य॑मे॒तद॑न॒डुहो॒ यत्रै॒ष वह॒ आहि॑तः। ए॒ताव॑दस्य प्रा॒चीनं॒ यावा॑न्प्र॒त्यङ्स॒माहि॑तः ॥
स्वर सहित पद पाठमध्य॑म् । ए॒तत् । अ॒न॒डुह॑: । यत्र॑ । ए॒ष: । वह॑: । आऽहि॑त: । ए॒ताव॑त् । अ॒स्य॒ । प्रा॒चीन॑म् । यावा॑न् । प्र॒त्यङ् । स॒म्ऽआहि॑त: ॥११.८॥
स्वर रहित मन्त्र
मध्यमेतदनडुहो यत्रैष वह आहितः। एतावदस्य प्राचीनं यावान्प्रत्यङ्समाहितः ॥
स्वर रहित पद पाठमध्यम् । एतत् । अनडुह: । यत्र । एष: । वह: । आऽहित: । एतावत् । अस्य । प्राचीनम् । यावान् । प्रत्यङ् । सम्ऽआहित: ॥११.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 11; मन्त्र » 8
भाषार्थ -
(अनडुहः) संसार-शकट का वहन करनेवाले परमेश्वर का (एतत्) यह (मध्यम्) मध्य प्रदेश है, (यत्र) जहाँ कि (एषः वहः) यह वहन करनेवाला परमेश्वर (आहितः) स्थित है। (एतावत्) इतना ही (अस्य) इस अनड्वान्-परमेश्वर का (प्राचीनम्) पूर्व का भाग है, (यावान्=यावत्) जितना कि (प्रत्यङ्) पश्चिम में (समाहितः) सम्यक् स्थित है।
टिप्पणी -
[कर्क और मकर राशि को परस्पर मिलानेवाली रेखा राशिचक्र को दो भागों में विभक्त करती है, पूर्वभाग में और पश्चिम भाग में। ये दोनों भाग परिमाण में सम हैं, बराबर-बराबर है। वहनकर्त्ता अनड्वान्-परमेश्वर, इन दो विभागों के मध्य में स्थित हुआ, दोनों भागों का यथावत् वहन करता है, शासन करता है। सौर जगत् में सूर्य कर्क-मकर रेखा को दो बराबर-बराबर भागों में बाँटता है। जनवरी से जून तक ६ महीनों में सूर्य इस रेखा के पूर्व में रहता है, और जुलाई से दिसम्बर तक ६ मासों में पश्चिम में रहता है। इसे ही, मन्त्र में 'प्राचीनम्' तथा 'प्रत्यङ्' द्वारा निर्दिष्ट किया है। 'वहः' का अर्थ है सौर परिवार का वहन करनेवाला सूर्य। आहित:=सूर्य स्थापित किया गया है 'चतुष्पात् ब्रह्म' द्वारा।]