अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 23/ मन्त्र 2
अ॒स्येन्द्र॑ कुमा॒रस्य॒ क्रिमी॑न्धनपते जहि। ह॒ता विश्वा॒ अरा॑तय उ॒ग्रेण॒ वच॑सा॒ मम॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्य । इ॒न्द्र॒ । कु॒मा॒रस्य॑ । क्रिमी॑न् । ध॒न॒ऽप॒ते॒ । ज॒हि॒ । ह॒ता: । विश्वा॑:। अरा॑तय: । उ॒ग्रेण॑ । वच॑सा । मम॑ ॥२३.२॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्येन्द्र कुमारस्य क्रिमीन्धनपते जहि। हता विश्वा अरातय उग्रेण वचसा मम ॥
स्वर रहित पद पाठअस्य । इन्द्र । कुमारस्य । क्रिमीन् । धनऽपते । जहि । हता: । विश्वा:। अरातय: । उग्रेण । वचसा । मम ॥२३.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 23; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(धनपते इन्द्र) धन के स्वामी हे सम्राट् ! (अस्य कुमारस्य) इस कुमारवर्ग के (क्रिमीन्) क्रिमियों का (जहि) हनन कर। (विश्वाः अरातयः) सब क्रिमीरूप शत्रु (मम) मेरे (उग्रेण वचसा) प्रभावशाली कथन द्वारा (हताः) नष्ट हो गये हैं।
टिप्पणी -
[इन्द्र=सम्राट् यथा 'इन्द्रश्च सम्राट्' (यजु:० ८.३७)। साम्राज्य के स्वास्थ्याधिकारी का यह वचन है। सम्राट् ने स्वयं तो चिकित्सक बन कर कुमारों के क्रिमियों का हनन नहीं करना, उसकी केवल स्वीकृति होनी है। स्वास्थ्याधिकारी को स्वीकृति मिलते ही वह कहता है कि मेरे प्रभावशाली वचनों के कारण मानों क्रिमि हत हो गये। धन की तो कमी नहीं। सरकारी 'कुमार चिकित्सालयों' की स्थापनाएँ हो जाती हैं, और क्रिमिचिकित्सा प्रारम्भ हो जाती है।