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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 11/ मन्त्र 3
सूक्त - प्रजापति
देवता - प्रजापत्यनुमतिः, सिनीवाली
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - पुंसवन सूक्त
प्र॒जाप॑ति॒रनु॑मतिः सिनीवा॒ल्य॑चीक्लृपत्। स्त्रैषू॑यम॒न्यत्र॒ दध॒त्पुमां॑समु दधदि॒ह ॥
स्वर सहित पद पाठप्र॒जाऽप॑ति: । अनु॑ऽमति: । सि॒नी॒वा॒ली । अ॒ची॒क्लृ॒प॒त् । स्रैसू॑यम् । अ॒न्यत्र॑ । दध॑त् । पुमां॑सम्। ऊं॒ इति॑ । द॒ध॒त्। इ॒ह ॥११.३॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रजापतिरनुमतिः सिनीवाल्यचीक्लृपत्। स्त्रैषूयमन्यत्र दधत्पुमांसमु दधदिह ॥
स्वर रहित पद पाठप्रजाऽपति: । अनुऽमति: । सिनीवाली । अचीक्लृपत् । स्रैसूयम् । अन्यत्र । दधत् । पुमांसम्। ऊं इति । दधत्। इह ॥११.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 11; मन्त्र » 3
भाषार्थ -
(प्रजापतिः) प्रजाओं के पति परमेश्वर ने, (अनुमतिः) पति के अनुकूल मति वाली पत्नी ने, (सिनोवाली) अन्नवाली तथा सुन्दर केशोंवाली पत्नी ने, (अचीक्लृपत्) रेतस् का [पुत्ररूप में] निर्माण किया है। (स्त्रैषूयम्) कन्या की उत्पत्ति [प्रजापति ने] (अन्यत्र) भिन्न अवस्था में (दधत्) स्थापित की है, ( उ) और (पुमासम्) पुमान् की उत्पत्ति (इह) यहां (दधत्) स्थापित की है, अर्थात् पति के अश्वत्य सदृश शक्तिशाली होने पर।
टिप्पणी -
[(१) प्रजापति द्वारा निर्मित नियम "अश्वत्व और शमी" शब्दों द्वारा कथित नियम, (२) और पत्यनुरक्ता पत्नी (३) तथा प्रभूत अन्नवाली पत्नी, ये पुत्र तथा कन्या को उत्पत्ति में सामर्थ्य वाले होते हैं। पत्नी यदि पत्यनुरक्ता न हो तो परस्पर प्रेम के अभाव में श्रेष्ठ सन्ताने उत्पन्न नहीं होती श। पत्नी के गृह में यदि खाद्य और पेय की यथोचित मात्रा न हो तो माता और सन्तानों का यथेष्ट पालन-पोषण न हो सकने से भी सन्ताने निर्बल हो जाती हैं। अनुमति और सिनीवाली चन्द्रकला-विशेष नहीं, अपितु देवपत्नियां हैं, दिव्यपुरुषों की पत्नियां हैं, "देवपत्न्यौ" इति नैरुक्ताः (निरुक्त ११।३।३२; पद सिनीवाली २२); सिनम् अन्ननाम (निघं० २।७)। अचीक्लृपत् - कृपू सामर्थ्ये (भ्वादिः)। अन्यत्र स्त्री के अश्वत्थ-सदृश शक्तिशाली, और पति के शमी आकृतिक अर्थात् निर्बल होने पर]।