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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 24 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 24/ मन्त्र 2
    ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः स कृत्रिमो वैश्वामित्रो देवरातः देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अ॒ग्नेर्व॒यं प्र॑थ॒मस्या॒मृता॑नां॒ मना॑महे॒ चारु॑ दे॒वस्य॒ नाम॑। स नो॑ म॒ह्या अदि॑तये॒ पुन॑र्दात्पि॒तरं॑ च दृ॒शेयं॑ मा॒तरं॑ च॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्नेः । व॒यम् । प्रथ॒मस्य॑ । अ॒मृता॑नाम् । मना॑महे । चारु॑ । दे॒वस्य॑ । नाम॑ । सः । नः॑ । म॒ह्यै । अदि॑तये । पुनः॑ । दा॒त् । पि॒तर॑म् । च॒ । दृ॒शेय॑म् । मा॒तर॑म् । च॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्नेर्वयं प्रथमस्यामृतानां मनामहे चारु देवस्य नाम। स नो मह्या अदितये पुनर्दात्पितरं च दृशेयं मातरं च॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्नेः। वयम्। प्रथमस्य। अमृतानाम्। मनामहे। चारु। देवस्य। नाम। सः। नः। मह्यै। अदितये। पुनः। दात्। पितरम्। च। दृशेयम्। मातरम्। च॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 24; मन्त्र » 2
    अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 13; मन्त्र » 2

    शब्दार्थ -
    (वयम्) हम (अमृतानाम्) नित्य पदार्थों में (प्रथमस्य अग्ने: देवस्य) सर्वप्रमुख, ज्ञानस्वरूप, परमात्मदेव के (चारु नाम मनामहे) सुन्दर नाम का स्मरण करें। (सः नः) वही परमात्मा हमें (मह्या अदितये) महती मुक्ति के लिए (पुन: दात्) फिर देता है और उसी से प्रेरणा पाकर (पितरं च मातरं च दृशेयम्) मैं माता और पिता के दर्शन करता हूँ ।

    भावार्थ - १. मनुष्यों को सर्वप्रमुख, ज्ञानस्वरूप परमात्मा का ही जप,ध्यान एवं स्मरण करना चाहिए । २. वह प्रभु ही जीव को मुक्ति में पहुँचाता है। ३. वही परमात्मा मुक्त जीव को मुक्ति-सुख-भोग के पश्चात् माता-पिता के दर्शन कराता है, उसे जन्म धारण कराता है । ४. जन्म धारण करना, मुक्ति प्राप्त करना, पुनः जन्म धारण करना-यह एक क्रम है जो निरन्तर चलता रहता है और चलना भी चाहिए । यदि जीव परमात्मा में विलीन हो जाए तो वह मुक्ति क्या हुई ?

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