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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 39 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 39/ मन्त्र 2
स्थि॒रा वः॑ स॒न्त्वायु॑धा परा॒णुदे॑ वी॒ळू उ॒त प्र॑ति॒ष्कभे॑ । यु॒ष्माक॑मस्तु॒ तवि॑षी॒ पनी॑यसी॒ मा मर्त्य॑स्य मा॒यिनः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठस्थि॒रा । वः॒ । स॒न्तु॒ । आयु॑धा । प॒रा॒ऽनुदे॑ । वी॒ळु । उ॒त । प्र॒ति॒ऽस्कभे॑ । यु॒ष्माक॑म् । अ॒स्तु॒ । तवि॑षी । पनी॑यसी । मा । मर्त्य॑स्य । मा॒यिनः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स्थिरा वः सन्त्वायुधा पराणुदे वीळू उत प्रतिष्कभे । युष्माकमस्तु तविषी पनीयसी मा मर्त्यस्य मायिनः ॥
स्वर रहित पद पाठस्थिरा । वः । सन्तु । आयुधा । परानुदे । वीळु । उत । प्रतिस्कभे । युष्माकम् । अस्तु । तविषी । पनीयसी । मा । मर्त्यस्य । मायिनः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 39; मन्त्र » 2
अष्टक » 1; अध्याय » 3; वर्ग » 18; मन्त्र » 2
अष्टक » 1; अध्याय » 3; वर्ग » 18; मन्त्र » 2
विषय - हमारे अस्त्र-शस्त्र
शब्दार्थ -
हे वीर सैनिको ! (प्रतिष्कभे पराणुदे) युद्ध में शत्रुओं को रोकने और उन्हें मार भगाने के लिए (व:) आप लोगों के (आयुधा) युद्ध करने के हथियार, अस्त्र-शस्त्र (स्थिरा: उत वीळू सन्तु) स्थिर और दृढ़ हों । हे वीर पुरुषो ! (युष्माकम्) तुम लोगों की (तविषी) बलवती सेना (पनीयसी) अत्यन्त व्यवहार कुशल एवं प्रशंसनीय हो; परन्तु (मायिन: मर्त्यस्य मा) जो मायावी शत्रु हैं, छल-कपट से युद्ध करनेवाले है उनके अस्त्र-शस्त्र वैसे दृढ़ और उनकी सेना वैसी प्रशंसनीय न हो ।
भावार्थ - देश की रक्षा का भार सैनिकों पर होता है परन्तु सैनिक देश की रक्षा उसी दशा में कर सकते हैं जब उनके अस्त्र-शस्त्र दृढ़ और तीक्ष्ण हों । कोई भी देश किसी भी समय किसी भी देश पर आक्रमण कर सकता है ; अत: राष्ट्र-रक्षा के लिए सैनिक सदैव उद्यत रहने चाहिएँ, उनके पास तीक्ष्ण, दृढ़ अस्त्र-शस्त्रों की कमी नहीं होनी चाहिए । सेना भी अत्यन्त बलवान्, व्यवहारकुशल और प्रशंसनीय होनी चाहिए । जो मायावी हैं, छल-कपट से युद्ध करनेवाले हैं, शत्रु हैं, उनके अस्त्र-शस्त्र स्थिर और दृढ़ नहीं होने चाहिएँ । उनकी सेना भी बलवान् नहीं होनी चाहिए - देश के सैनिकों को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए । तीक्ष्ण, दृढ़ एवं स्थिर अस्त्र-शस्त्रों से संग्राम में विजय प्राप्त की जा सकती है। अतः इस सम्बन्ध में सदा सावधान रहना चाहिए ।
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