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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 50 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 50/ मन्त्र 11
ऋषिः - प्रस्कण्वः काण्वः
देवता - सूर्यः
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
उ॒द्यन्न॒द्य मि॑त्रमह आ॒रोह॒न्नुत्त॑रां॒ दिव॑म् । हृ॒द्रो॒गं मम॑ सूर्य हरि॒माणं॑ च नाशय ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त्ऽयन् । अ॒द्य । मि॒त्र॒ऽम॒हः॒ । आ॒ऽरोह॑न् । उत्ऽत॑राम् । दिव॑म् । हृ॒त्ऽरो॒गम् । मम॑ । सू॒र्य॒ । ह॒रि॒माण॑म् । च॒ । ना॒श॒य॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उद्यन्नद्य मित्रमह आरोहन्नुत्तरां दिवम् । हृद्रोगं मम सूर्य हरिमाणं च नाशय ॥
स्वर रहित पद पाठउत्यन् । अद्य । मित्रमहः । आरोहन् । उत्तराम् । दिवम् । हृत्रोगम् । मम । सूर्य । हरिमाणम् । च । नाशय॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 50; मन्त्र » 11
अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 8; मन्त्र » 6
अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 8; मन्त्र » 6
विषय - सूर्य चिकित्सा
शब्दार्थ -
(मित्रमहः) हे मित्र के समान सत्कार योग्य ! (सूर्य) सूर्य (उद्यन्) उदय होता हुआ और (उत्तरां दिवम् आरोह) उत्तरोत्तर आकाश में चढ़ता हुआ (मम) मेरे (हृद्रोगम् ) हृदय के रोग को और (हरिमाणम्) पीलिया रोग को (अद्य) आज ही (नाशय) नष्ट कर दे ।
भावार्थ - आज संसार में नाना प्रकार की चिकित्सा-पद्धतियाँ प्रचलित हैं - एलोपैथिक, होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक, बायोकैमिक आदि। इसी प्रकार जल चिकित्सा, सूर्य चिकित्सा, मिट्टी द्वारा चिकित्सा, प्राकृतिक चिकित्सा, और भी न जाने कौन-कौन-सी चिकित्साएँ हैं। इन सभी चिकित्साओं का मूल स्रोत, उद्गम-स्थान वेद है । संसार की सभी पद्धतियाँ (pathies) वेद से ही निकली हैं । प्रस्तुत मन्त्र में सूर्य चिकित्सा का स्पष्ट वर्णन है । - १. उदय होकर आकाश में चढ़ता हुआ सूर्य हृदय सम्बन्धी रोगों को दूर करता है । २. सूर्य-चिकित्सा द्वारा पीलिया रोग भी नष्ट हो जाता है । वेद में अन्यत्र अनेक मन्त्र हैं जिनमें सूर्य-चिकित्सा द्वारा अन्य रोगों के नष्ट होने का वर्णन मिलता है । (अथर्ववेद ५ । २३ । ६) के अनुसार सूर्य दिखाई देनेवाले और दिखाई न देनेवाले रोग-कीटाणुओं को नष्ट कर देता है । (अथर्व० ९ । ८ । २२) के अनुसार सूर्य सिर के रोगों को दूर कर देता है ।
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