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यजुर्वेद अध्याय - 6

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  • यजुर्वेद - अध्याय 6/ मन्त्र 35
    ऋषिः - मधुच्छन्दा ऋषिः देवता - द्यावापृथिव्यौ देवते छन्दः - भूरिक् आर्षी अनुष्टुप्, स्वरः - गान्धारः
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    मा भे॒र्मा संवि॑क्था॒ऽऊर्जं॑ धत्स्व॒ धिष॑णे वी॒ड्वी स॒ती वी॑डयेथा॒मूर्जं॑ दधाथाम्। पा॒प्मा ह॒तो न सोमः॑॥३५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा। भेः॒। मा। सम्। वि॒क्थाः॒। ऊर्ज॑म्। ध॒त्स्व॒। धिष॑णे॒ऽइति॑ धिष॑णे। वीड्वीऽइति॑ वी॒ड्वी। स॒ती॑ऽइति॑ स॒ती। वी॒ड॒ये॒था॒म्। ऊ॑र्जम्। द॒धा॒था॒म्। पा॒प्मा। ह॒तः। न। सोमः॑ ॥३५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा भेर्मा सँविक्था ऊर्जन्धत्स्व धिषणे वीड्वी सती वीडयेथामूर्जन्दधाथाम् । पाप्मा हतो न सोमः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    मा। भेः। मा। सम्। विक्थाः। ऊर्जम्। धत्स्व। धिषणेऽइति धिषणे। वीड्वीऽइति वीड्वी। सतीऽइति सती। वीडयेथाम्। ऊर्जम्। दधाथाम्। पाप्मा। हतः। न। सोमः॥३५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 6; मन्त्र » 35
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    शब्दार्थ -
    (मा भे:) हे मानव ! डर मत (मा संविक्था) कम्पायमान मत हो, मत घबड़ा । (ऊर्जम् धत्स्व ) बल, साहस, पराक्रम धारण कर । (धिषणे) वाणी और विद्या का आश्रय लेकर और इन दोनों के आश्रय से (वीड्वीसती) बलवान् होकर (वीडयेथाम्) पुरुषार्थ करो (ऊर्जम् दधाथाम्) पराक्रम करो, जौहर दिखाओ ! (पाप्मा:) पाप करनेवाला शत्रु, पापी (हत:) मारा जाए, नष्ट हो जाए (न सोम:) सौम्यगुणयुक्त, सदाचारी पुरुषों का नाश न हो ।

    भावार्थ - यदि संसार में पाप, अनाचार, भ्रष्टाचार, पाखण्ड, दम्भ, अधर्म बढ़ गया है, यदि दस्युओं, अनार्यो, अधर्मात्माओं और पाखण्डियों ने संसार के लोगों को आतंकित कर रक्खा है तो डरो मत, भयभीत मत होओ, घबराओ मत । उठो, खड़े हो जाओ और पराक्रम करो । विद्याबल से अपने को विभूषित करो, वाणी का बल सम्पादन करो । विद्या और वाणी का आश्रय लेकर-इन दोनों से बलवान् बनकर दानवता को दग्ध करने के लिए, मानवता का त्राण करने के लिए संसार में कूद पड़ो, जौहर कर दो । ऐसा पराक्रम करो कि जितने भी पापी, अत्याचारी, अनाचारी और पाखण्डी हैं उनमें से एक भी जीवित न रह पाए । पापियों को नष्ट-भ्रष्ट कर दो। जो सौम्य हैं, पुण्यात्मा हैं, सदाचारी और श्रेष्ठ पुरुष हैं उनकी रक्षा करो ।

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