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ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 191/ मन्त्र 2
सं ग॑च्छध्वं॒ सं व॑दध्वं॒ सं वो॒ मनां॑सि जानताम् । दे॒वा भा॒गं यथा॒ पूर्वे॑ संजाना॒ना उ॒पास॑ते ॥
स्वर सहित पद पाठसम् । ग॒च्छ॒ध्व॒म् । सम् । व॒द॒ध्व॒म् । सम् । वः॒ । मनां॑सि । जा॒न॒ता॒म् । दे॒वाः । भा॒गम् । यथा॑ । पूर्वे॑ । स॒म्ऽजा॒ना॒नाः । उ॒प॒ऽआस॑ते ॥
स्वर रहित मन्त्र
सं गच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम् । देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते ॥
स्वर रहित पद पाठसम् । गच्छध्वम् । सम् । वदध्वम् । सम् । वः । मनांसि । जानताम् । देवाः । भागम् । यथा । पूर्वे । सम्ऽजानानाः । उपऽआसते ॥ १०.१९१.२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 191; मन्त्र » 2
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 49; मन्त्र » 2
अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 49; मन्त्र » 2
Bhajan -
आज का वैदिक भजन 🙏 1071
भाग 1/3
ओ३म् सं ग॑च्छध्वं॒ सं व॑दध्वं॒ सं वो॒ मनां॑सि जानताम् ।
दे॒वा भा॒गं यथा॒ पूर्वे॑ संजाना॒ना उ॒पास॑ते ॥
ऋग्वेद 10/191/2
ऐ प्यारे मनुष्य लोगों,
उसी धर्म को ग्रहण करो जो,
पक्षपात रहित है न्याय प्रधान
उसके ही अनुरूप चलो तुम,
जिस से बढ़ता जाए सुख-धन,
सम्मति रहे परस्पर निष्ठावान,
विरुद्ध भाव को छोड़ परस्पर,
प्रश्नोत्तर सम्वाद करो तुम,
सब सत्यों का वर्तित वेद प्रमाण
ऐ प्यारे मनुष्य लोगों,
उसी धर्म को ग्रहण करो जो,
पक्षपात रहित है न्याय प्रधान
अपने सही वेद ज्ञान को,
दिनों दिन स्वाध्याय बढ़ाओ,
होवे मन ज्योतिर्मयी महान् ,
जिससे सतत् ज्ञानी होकर,
नित्य रहें आनन्द में रत,
बन जाएँ धार्मिक-निष्काम,
जगत् में जो भी है धर्मी,
बनते हैं वो ही सुकर्मी,
वेदों से शिक्षा लेकर,
आते हैं प्रभु की शरणी,
इसलिए पा लो ज्ञान,
और बनो सत्यवान
ऐ प्यारे मनुष्य लोगों,
उसी धर्म को ग्रहण करो जो,
पक्षपात रहित है न्याय प्रधान
तीन रीत से नित धर्म,
करता जा आत्मोत्थान,
प्रथम है शिक्षा के विद्वान् ,
दूसरा आत्मा की शुद्धि,
सत्य ज्ञान की शुभेच्छा,
तीजा है वेद का निष्ठावान्,
वेदों की ही शिक्षा से,
होता है बोध भी सच का,
वरना अज्ञान के कारण,
जीवन तो बोझ ही बनता,
सब विचार हों आदान,
और प्रदान निष्ठावान्
ऐ प्यारे मनुष्य लोगों,
उसी धर्म को ग्रहण करो जो,
पक्षपात रहित है न्याय प्रधान
उसके ही अनुरूप चलो तुम,
जिस से बढ़ता जाए सुख-धन,
सम्मति रहे परस्पर निष्ठावान,
विरुद्ध भाव को छोड़ परस्पर,
प्रश्नोत्तर सम्वाद करो तुम,
सब सत्यों का वर्तित वेद प्रमाण
ऐ प्यारे मनुष्य लोगों,
उसी धर्म को ग्रहण करो जो,
पक्षपात रहित है न्याय प्रधान
रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
रचना दिनाँक :-
राग :- देस
राग का गायन समय रात्रि 8:00 के बाद, ताल कहरवा ८ मात्रा
शीर्षक :- धर्म के लक्षण
*तर्ज :- *
0097-697
वर्तित = सम्पादित, चलाया हुआ, ठीक किया
निष्ठावान = श्रद्धा से युक्त