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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 191 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 191/ मन्त्र 3
    ऋषिः - संवननः देवता - संज्ञानम् छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    स॒मा॒नो मन्त्र॒: समि॑तिः समा॒नी स॑मा॒नं मन॑: स॒ह चि॒त्तमे॑षाम् । स॒मा॒नं मन्त्र॑म॒भि म॑न्त्रये वः समा॒नेन॑ वो ह॒विषा॑ जुहोमि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒मा॒नः । मन्त्रः॑ । सम्ऽइ॑तिः । स॒मा॒नी । स॒मा॒नम् । मनः॑ । स॒ह । चि॒त्तम् । ए॒षा॒म् । स॒मा॒नम् । मन्त्र॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समानो मन्त्र: समितिः समानी समानं मन: सह चित्तमेषाम् । समानं मन्त्रमभि मन्त्रये वः समानेन वो हविषा जुहोमि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    समानः । मन्त्रः । सम्ऽइतिः । समानी । समानम् । मनः । सह । चित्तम् । एषाम् । समानम् । मन्त्रम् । अमि । मंत्रये । वः । समानेन । वः । हविषा । जुहोमि ॥ १०.१९१.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 191; मन्त्र » 3
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 49; मन्त्र » 3

    Bhajan -

    आज का वैदिक भजन 🙏 1072 

    भाग 2/3
     
    ओ३म् स॒मा॒नो मन्त्र॒: समि॑तिः समा॒नी स॑मा॒नं मन॑: स॒ह चि॒त्तमे॑षाम् ।
    स॒मा॒नं मन्त्र॑म॒भि म॑न्त्रये वः समा॒नेन॑ वो ह॒विषा॑ जुहोमि ॥
    ऋग्वेद 10/191/3

    ऐ प्यारे मनुष्य लोगों, 
    जो विचार हैं सत्य-असत्य के,
    सभी परस्पर सोचें वेद-समान,
    धर्मयुक्त हों सबके हित में,           
    मिलकर सोचें जो हों ऋत में,
    जिसमें सबके सुखों का हो वरदान,
    जिसमें मानव-जाति का,
    बढ़ता जाए ज्ञान विज्ञान,
    विद्याभ्यास ब्रह्मचर्य के हों काम
    ऐ प्यारे मनुष्य लोगों, 
    जो विचार हैं सत्य-असत्य के,
    सभी परस्पर सोचें वेद-समान

    अच्छे अच्छे लोगों की,
    बनी सजग सभाओं में,
    राज्य प्रबन्धक हों गुणवान्,
    जिसमें बुद्धि बल पराक्रम,
    आदि सारे गुण बढ़ जाएँ, 
    उत्तम मर्यादा सत्यकाम, 
    मन होवे अविरोधी,
    सुख-संयम के सहयोगी,
    समतुल्य समझे सबको,
    ना स्वार्थी ना हो लोभी,
    संकल्प और विकल्प का,
    मार्मिक होवे ज्ञान
    ऐ प्यारे मनुष्य लोगों, 
    जो विचार हैं सत्य-असत्य के,
    सभी परस्पर सोचें वेद-समान

    मन भरा हो संकल्पों से,
    होवें सदा ही पुरुषार्थी,
    अविरुद्ध दृढ़ हो धर्म-ज्ञान,
    शुभ विचार से हो अंकित,
    यथावत हमारे आशय,
    निस्वार्थ मन-चित्त हों समान,
    देवें लोगों को सुख ही,
    ना चेष्टा करें दु:ख की,
    बन के सबका उपकारी,
    इच्छा रखें अमृत की,
    हम करें न्याय दया,
    सत्य का सम्मान
    ऐ प्यारे मनुष्य लोगों, 
    जो विचार हैं सत्य-असत्य के,
    सभी परस्पर सोचें वेद-समान

    कहते प्यारे कृपा निधान,
    ले लो शुभ व्रतों का ज्ञान,
    मेरी आज्ञा का रख लो मान,
    सत्य का हो जाए आगम,
    और असत्य का हो नाशन,
    हो कर्म त्रुटियों का निदान,
    तुम लेन देन को समझो,
    इसे धर्म युक्त ही मन दो,
    व्यवहार करो ना अनमन,
    संयोग सत्य का कर लो,
    रच दिया है मैंने ही तो,
    सत्य का संविधान
    ऐ प्यारे मनुष्य लोगों, 
    जो विचार हैं सत्य-असत्य के,
    सभी परस्पर सोचें वेद-समान
    धर्मयुक्त हों सबके हित में,           
    मिलकर सोचें जो हों ऋत में,
    जिसमें सबके सुखों का हो वरदान,
    जिसमें मानव-जाति का,
    बढ़ता जाए ज्ञान विज्ञान,
    विद्याभ्यास ब्रह्मचर्य के हों काम
    ऐ प्यारे मनुष्य लोगों, 
    जो विचार हैं सत्य-असत्य के,
    सभी परस्पर सोचें वेद-समान

    रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
    रचना दिनाँक :-  
    राग :- देस
    राग का गायन समय रात्रि 8:00 के बाद, ताल कहरवा ८ मात्रा  

    शीर्षक :- धर्म के लक्षण 
    *तर्ज :- *
    697-0098 

    ऋत = कभी ना बदलने वाले शाश्वत नियम
    अंकित = चिन्हित
    आशय = अभिप्राय,उद्देश्य
    आगम = प्रवेश करना
    निदान = अंत करना
    अनमन = तंग आया हुआ मन

     

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