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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 47 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 47/ मन्त्र 15
क ईं॑ स्तव॒त्कः पृ॑णा॒त्को य॑जाते॒ यदु॒ग्रमिन्म॒घवा॑ वि॒श्वहावे॑त्। पादा॑विव प्र॒हर॑न्न॒न्यम॑न्यं कृ॒णोति॒ पूर्व॒मप॑रं॒ शची॑भिः ॥१५॥
स्वर सहित पद पाठकः । ई॒म् । स्त॒व॒त् । कः । पृ॒णा॒त् । कः । य॒जा॒ते॒ । यत् । उ॒ग्रम् । इत् । म॒घऽवा॑ । वि॒श्वहा । अवे॑त् । पादौ॑ऽइव । प्र॒ऽहर॑न् । अ॒न्यम्ऽअ॑न्यम् । कृ॒णोति॑ । पूर्व॑म् । अप॑रम् । शची॑भिः ॥
स्वर रहित मन्त्र
क ईं स्तवत्कः पृणात्को यजाते यदुग्रमिन्मघवा विश्वहावेत्। पादाविव प्रहरन्नन्यमन्यं कृणोति पूर्वमपरं शचीभिः ॥१५॥
स्वर रहित पद पाठकः। ईम्। स्तवत्। कः। पृणात्। कः। यजाते। यत्। उग्रम्। इत्। मघऽवा। विश्वहा। अवेत्। पादौऽइव। प्रऽहरन्। अन्यम्ऽअन्यम्। कृणोति। पूर्वम्। अपरम्। शचीभिः ॥१५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 47; मन्त्र » 15
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 32; मन्त्र » 5
अष्टक » 4; अध्याय » 7; वर्ग » 32; मन्त्र » 5
Bhajan -
आज का वैदिक भजन 🙏 1087
ओ३म् क ईं॑ स्तव॒त्कः पृ॑णा॒त्को य॑जाते॒ यदु॒ग्रमिन्म॒घवा॑ वि॒श्वहावे॑त् ।
पादा॑विव प्र॒हर॑न्न॒न्यम॑न्यं कृ॒णोति॒ पूर्व॒मप॑रं॒ शची॑भिः ॥
ऋग्वेद 6/47/15
सुनता सबकी वो ही
हम तो हैं बटोही,
आगे आगे चलते जाना
फर्ज से ही बढ़ते जाना,
हो विजय कर्म की हे प्रभु !
प्रेरणा कृपा तुम्हारी रोज़ पाई,
परम ऐश्वर्यवान्
इन्द्र प्रभु की स्तुति कर लो
यजन-पूजन करते रहो
कर्म ही करेगा सब की भरपाई
समझो ना के उग्र लोग
पाते विजय
और धर्मी होते शोषित
हर समय
इस प्रकार सोचना
है हमारी भूल
पापियों को चुभते रहते
पाप रूपी शूल
पाप का भरा घड़ा
टूटता सदा
सुन लो आर्यों मर्म को
सबसे आगे भी खड़ा
तो पीछे करता कूच
और कभी तो पीछे वाला
बनता अग्ररूप
जैसे आगे पीछे पैर
चलते रहते रोज़
वैसे ही समाज में
अलग गति के लोग
पर प्रभु की स्तुति प्रार्थना
रहे निरोग
सुन लो आर्यों मर्म को
दुर्जनों की पंक्ति में
ना तुम खड़े रहो
रोज़ सज्जनों के
पीछे पीछे तुम चलो
विजयी बनना है तो
उसकी स्तुति करो
मद को त्याग दो
प्रभु कृपा में ही रहो
बरसेगी प्रभु कृपा
सतत् जान लो
सुन लो आर्यों मर्म को
सुनता सबकी वो ही
हम तो हैं बटोही,
आगे आगे चलते जाना
फर्ज से ही बढ़ते जाना,
हो विजय कर्म की हे प्रभु !
प्रेरणा कृपा तुम्हारी रोज़ पाई,
प्रेरणा कृपा तुम्हारी रोज़ पाई,
प्रेरणा कृपा तुम्हारी रोज़ पाई
रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
रचना दिनाँक :- २३.५.१७ २१.३५
राग :- जयजयवंती
राग का गायन समय रात्रि का दूसरा प्रहर, ताल गरबा ६ मात्रा
शीर्षक :- क्यों करें हम उसकी स्तुति 663 वां भजन
*तर्ज :- *
0105-705
बटोही = यात्री, पथिक
Vyakhya -
प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇
क्यों करें हम उसकी स्तुति
तुम कहते हो कि परम ऐश्वर्य व इन्द्र प्रभु की स्तुति करो,अर्चना करो, वंदना करो। पर हम पूछते हैं कि क्यों करें? हम उसकी स्तुति,उसका स्तवन, क्यों करें? कौन उसे रिझाये? कौन उसका यजन पूजन करें? यह सब करने से क्या लाभ है तुम्हारा? वह परम ऐश्वर्यशाली इन्द्र तो उसी की रक्षा करता है,जो उग्र है। संसार में जिसकी लाठी उसी की भैंस की ही लोकोक्ति चरितार्थ होती है। जो उग्र प्रचण्ड और बली है उसी की विजय होती है । पूजा करने से परमेश्वर हमारी रक्षा तो कर नहीं देगा । फिर उसकी पूजा में समय नष्ट क्यों करें?
भाइयो यदि तो ऐसा समझते हो तो भूल करते हो। यदि जगत में उग्र लोगों की ही सदा विजय होती तो यह जगत कभी का समाप्त हो चुका होता। उग्र जब सदा पनपते रहते हैं और धर्मात्मार्ओं का शोषण करते रहते तो एक भी धर्मात्मा भूतल पर न बचता।भले ही कभी-कभी यह देखने में आता हो कि उग्र दुर्जन ही रक्षित हो रहे हैं,उन्हीं की विजय हो रही है, पर अंततः वह परमेश्वर के प्रकोप के ही भाजन बनते हैं ।जब उनके पाप का घड़ा भर जाता है तब एक दिन वह सबसे पीछे खड़े दिखाई देते हैं। और रक्षा तो दूर,उनके सत्ता भी खतरे में पड़ी दिखाई देती है। क्या तुम नहीं देखते हैं कि जो आज पिछड़े हुए हैं वे सबसे आगे की पंक्ति में पहुंच जाते हैं,और जो सबसे आगे खड़े हैं वह पीछे पहुंच जाते हैं। जैसे चलता हुआ कोई मनुष्य कर्म से पीछे के पैर को आगे बढ़ाता है और अगले पैर को पीछे ले जाता है वैसे ही समाज में लोगों की गति हो रही है इन्द्र परमेश्वर ही अपने कर्मों से यह सब कर रहे हैं अतः परमेश्वर की स्तुति को निष्फल मत समझो। उस की स्तुति कृपा और प्रेरणा से एक दिन तुम अवश्य ही सबके शिरोमणि बन जाओगे।
उग्र की नहीं तुम्हारी रक्षा होगी तुम विजयीबनोगे। अतः सभी शंकाओं और संदेशों को मिटाकर बिना प्रमाद के तल्लीन होकर इन्द्र प्रभु की स्तुति और आराधना करो।
प्रभु तुम पर अवश्य कृपा करेंगे।