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यजुर्वेद अध्याय - 7

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  • यजुर्वेद - अध्याय 7/ मन्त्र 32
    ऋषिः - त्रिशोक ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - आर्षी गायत्री,आर्ची उष्णिक् स्वरः - ऋषभः, षड्जः
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    आ घा॒ऽअ॒ग्निमि॑न्ध॒ते स्तृ॒णन्ति॑ ब॒र्हिरा॑नु॒षक्। येषा॒मिन्द्रो॒ युवा॒ सखा॑। उ॒प॒या॒मगृ॑हीतोऽस्यग्नी॒न्द्राभ्यां॑ त्वै॒ष ते॒ योनि॑रग्नी॒न्द्राभ्यां॑ त्वा॥३२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ। घ॒। ये। अ॒ग्निम्। इ॒न्ध॒ते। स्तृ॒णन्ति॑। ब॒र्हिः। आ॒नु॒षक्। येषा॑म्। इन्द्रः॑। युवा॑। सखा॑। उ॒पा॒या॒मगृ॑हीत॒ इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। अ॒ग्नी॒न्द्राभ्या॑म्। त्वा॒। ए॒षः। ते॒। योनिः॑। अ॒ग्नी॒न्द्राभ्या॑म्। त्वा॒ ॥३२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ घा ये अग्निमिन्धते स्तृणन्ति बर्हिरानुषक् । येषामिन्द्रो युवा सखा । उपयामगृहीतो स्यग्नीन्द्राभ्यान्त्वैष ते योनिरग्नीन्द्राभ्यां त्वा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आ। घ। ये। अग्निम्। इन्धते। स्तृणान्ति। बर्हिः। आनुषक्। येषाम्। इन्द्रः। युवा। सखा। उपायामगृहीत इत्युपयामऽगृहीतः। असि। अग्नीन्द्राभ्याम्। त्वा। एषः। ते। योनिः। अग्नीन्द्राभ्याम्। त्वा॥३२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 7; मन्त्र » 32
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    Word Meaning -
    पदार्थः—(ये) वेदविद्यासम्पन्न विद्वान् सभासद् (अग्निम्) विद्युत् आदि (घ) ही को (इन्धते) प्रकाशित करते और (आनुषक्) अनुक्रम अर्थात् यज्ञ के यथोक्त क्रम से (बर्हिः) अन्तरिक्ष का (आ) (स्तृणन्ति) आच्छादन करते हैं तथा (येषाम्) जिनका (युवा) सर्वाङ्ग पुष्ट, सर्वाङ्ग सुन्दर, सर्वविद्या विचक्षण तरुण अवस्था और (इन्द्रः) सकलैश्वर्य्ययुक्त सभापति (सखा) मित्र है, (अग्नीन्द्राभ्याम्) उन अग्नि और सूर्य्य के समान प्रकाशमान सभासदों से (उपयामगृहीतः) प्रजाधर्म्म से युक्त तू ग्रहण किया गया (असि) है। जिस (ते) तेरा (एषः) न्याययुक्त सिद्धान्त (योनिः) घर के सदृश है, उस (त्वा) तुझ को प्राप्त हुए हम लोग (अग्नीन्द्राभ्याम्) उक्त महापदार्थों के लिये (त्वा) तुझ को उपदेश करते हैं॥३२॥

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