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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 31 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 31/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिपाद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    अ॒भी षु णः॒ सखी॑नामवि॒ता ज॑रितॄ॒णाम्। श॒तं भ॑वास्यू॒तिभिः॑ ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । सु । नः॒ । सखी॑नाम् । अ॒वि॒ता । ज॒रि॒तॄ॒णाम् । श॒तम् । भ॒वा॒सि॒ । ऊ॒तिऽभिः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभी षु णः सखीनामविता जरितॄणाम्। शतं भवास्यूतिभिः ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि। सु। नः। सखीनाम्। अविता। जरितॄणाम्। शतम्। भवासि। ऊतिऽभिः ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 31; मन्त्र » 3
    अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 24; मन्त्र » 3

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द] - O ruler ! those who establish their friendliness with their protective powers and nice learnings, you come forward to protect us with such hundreds of people.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द] -
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    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द] - Those who treat others, as if their own happiness and profits are involved and behave with them in a loving way, they are sought after for making friends.

    Foot Notes - (सखीनाम् ) सर्वसुहृदाम् । = Of the bosom friends. (जरितृणाम् ) सद्विद्याविदाम् । = Of the learned persons well-versed in useful sciences.

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