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  • यजुर्वेद - अध्याय 20/ मन्त्र 16
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - सूर्य्यो देवता छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    यदि॒ जाग्र॒द् यदि॒ स्वप्न॒ऽएना॑सि चकृ॒मा व॒यम्। सूर्यो॑ मा॒ तस्मा॒देन॑सो॒ विश्वा॑न्मुञ्च॒त्वꣳह॑सः॥१६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यदि॑। जाग्र॑त्। यदि॑। स्वप्ने॑। एना॑सि। च॒कृ॒म। व॒यम्। सूर्यः॑। मा॒। तस्मा॑त्। एन॑सः। विश्वा॑त्। मु॒ञ्च॒तु॒। अꣳह॑सः ॥१६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदि जाग्रद्यदि स्वप्नऽएनाँसि चकृमा वयम् । सूर्यो मा तस्मादेनसो विश्वान्मुञ्चत्वँहसः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यदि। जाग्रत्। यदि। स्वप्ने। एनासि। चकृम। वयम्। सूर्यः। मा। तस्मात्। एनसः। विश्वात्। मुञ्चतु। अꣳहसः॥१६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 20; मन्त्र » 16
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    पदार्थ -
    हे विद्वन्! (यदि) जो (जाग्रत्) जाग्रत् अवस्था और (यदि) जो (स्वप्ने) स्वप्नावस्था में (एनांसि) अपराधों को (वयम्) हम (चकृम) करें, (तस्मात्) उस (विश्वात्) समग्र (एनसः) पाप और (अंहसः) प्रमाद से (सूर्यः) सूर्य के समान वर्त्तमान आप (मा) मुझको (मुञ्चतु) पृथक् करें॥१६॥

    भावार्थ - जिस किसी दुष्ट चेष्टा को मनुष्य लोग करें, विद्वान् लोग उस चेष्टा से उन सब को शीघ्र निवृत्त करें॥१६॥

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