Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 36/ मन्त्र 12
    ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः देवता - आपो देवताः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
    7

    शन्नो॑ दे॒वीर॒भिष्ट॑य॒ऽआपो॑ भवन्तु पी॒तये॑।शंयोर॒भि स्र॑वन्तु नः॥१२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शम्। नः॒। दे॒वीः। अ॒भिष्ट॑ये। आपः॑। भ॒व॒न्तु॒। पी॒तये॑ ॥ शंयोः। अ॒भि। स्र॒व॒न्तु॒। नः॒ ॥१२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये । शँयोरभि स्रवन्तु नः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    शम्। नः। देवीः। अभिष्टये। आपः। भवन्तु। पीतये॥ शंयोः। अभि। स्रवन्तु। नः॥१२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 36; मन्त्र » 12
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    हे जगदीश्वर वा विद्वन्! जैसे (अभिष्टये) इष्ट सुख की सिद्धि के लिये (पीतये) पीने के अर्थ (देवीः) दिव्य उत्तम (आपः) जल (नः) हमको (शम्) सुखकारी (भवन्तु) होवें (नः) हमारे लिये (शंयोः) सुख की वृष्टि (अभि, स्रवन्तु) सब ओर से करें, वैसे उपदेश करो॥१२॥

    भावार्थ - जो मनुष्य यज्ञादि से शुद्ध जलादि पदार्थों का सेवन करते हैं, उन पर सुखरूप अमृत की वर्षा निरन्तर होती है॥१२॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top