Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 38/ मन्त्र 7
    ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः देवता - वातो देवता छन्दः - अष्टिः स्वरः - मध्यमः
    8

    स॒मु॒द्राय त्वा॒ वाता॑य॒ स्वाहा॑। सरि॒राय॑ त्वा॒ वाता॑य॒ स्वाहा॑।अ॒ना॒धृ॒ष्याय॑ त्वा॒ वाता॑य॒ स्वाहा॑। अ॒प्र॒ति॒धृ॒ष्याय॑ त्वा॒ वाता॑य॒ स्वाहा॑।अ॒व॒स्यवे॑ त्वा॒ वाता॑य॒ स्वाहा॑। अ॒शि॒मि॒दाय॑ त्वा॒ वाता॑य॒ स्वाहा॑॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒मुद्राय॑। त्वा॒। वाता॑य। स्वाहा॑। स॒रि॒राय॑। त्वा॒। वाता॑य॒। स्वाहा॑। अ॒ना॒धृष्याय॑। त्वा॒। वाता॑य। स्वाहा॑। अ॒प्र॒ति॒धृ॒ष्यायेत्य॑प्रति॑ऽधृ॒ष्याय॑। त्वा॒। वाता॑य। स्वाहा॑। अ॒व॒स्यवे॑ त्वा॒। वाता॑य। स्वाहा॑। अ॒शि॒मि॒दायेत्य॑शिमि॒ऽदाय॑। त्वा॒। वाता॑य। स्वाहा॑ ॥७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समुद्राय त्वा वाताय स्वाहा सरिराय त्वा वाताय स्वाहा । अनाधृष्याय त्वा वाताय स्वाहा प्रतिधृष्याय त्वा वाताय स्वाहा । अवस्यवे त्वा वाताय स्वाहाशिमिदाय त्वा वाताय स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    समुद्राय। त्वा। वाताय। स्वाहा। सरिराय। त्वा। वाताय। स्वाहा। अनाधृष्याय। त्वा। वाताय। स्वाहा। अप्रतिधृष्यायेत्यप्रतिऽधृष्याय। त्वा। वाताय। स्वाहा। अवस्यवे त्वा। वाताय। स्वाहा। अशिमिदायेत्यशिमिऽदाय। त्वा। वाताय। स्वाहा॥७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 38; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    अन्वयः - हे स्त्रि पुरुष वाऽहं स्वाहा समुद्राय वाताय त्वा स्वाहा सरिराय वाताय त्वा स्वाहाऽनाधृष्याय वाताय त्वा स्वाहाऽप्रतिधृष्याय वाताय त्वा स्वाहाऽवस्यवे वाताय त्वा स्वाहाऽशिमिदाय वाताय त्वोपयच्छामि॥७॥

    पदार्थः -
    (समुद्राय) अन्तरिक्षे गमनाय (त्वा) त्वाम् (वाताय) वायुविद्यायै वायोः शोधनाय वा (स्वाहा) सत्यया वाचा क्रियया वा (सरिराय) उदकशोधनाय (त्वा) (वाताय) गृहस्थाय वायवे (स्वाहा) (अनाधृष्याय) भयधर्षणराहित्याय (त्वा) (वाताय) ओषधिस्थवायुविज्ञानाय (स्वाहा) (अप्रतिधृष्याय) अधर्षितुं योग्यान् प्रति वर्त्तमानाय (त्वा) (वाताय) वायुवेगगतिविज्ञानाय (स्वाहा) (अवस्यवे) आत्मनोऽवमिच्छवे (त्वा) (वाताय) प्राणशक्तिविज्ञानाय (स्वाहा) (वाताय) उदानाय (स्वाहा)॥७॥

    भावार्थः - अत्र पूर्वस्मान्मन्त्रादुपयच्छामिति पदे अनुवर्त्तेते। कृतविवाहौ स्त्री-पुरुषौ सृष्टिविद्योन्नतये प्रयतेयाताम्॥७॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top