Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 10/ मन्त्र 11
    ऋषिः - वरुण ऋषिः देवता - यजमानो देवता छन्दः - आर्ची पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    1

    दक्षि॑णा॒मारो॑ह त्रि॒ष्टुप् त्वा॑वतु बृ॒हत्साम॑ पञ्चद॒श स्तोमो॑ ग्री॒ष्मऽऋ॒तुः क्ष॒त्रं द्रवि॑णम्॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दक्षि॑णाम्। आ। रो॒ह॒। त्रि॒ष्टुप्। त्रि॒स्तुबिति॑ त्रि॒ऽस्तुप्। त्वा॒। अ॒व॒तु॒। बृ॒हत्। साम॑। प॒ञ्च॒द॒श इति॑ पञ्चऽद॒शः। स्तोमः॑। ग्री॒ष्मः। ऋ॒तुः। क्ष॒त्रम्। द्रवि॑णम् ॥११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दक्षिणामारोह त्रिष्टुप्त्वावतु बृहत्साम पञ्चदश स्तोमो ग्रीष्मऽऋतुः क्षत्रन्द्रविणन्प्रतीचीमारोह ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    दक्षिणाम्। आ। रोह। त्रिष्टुप्। त्रिस्तुबिति त्रिऽस्तुप्। त्वा। अवतु। बृहत्। साम। पञ्चदश इति पञ्चऽदशः। स्तोमः। ग्रीष्मः। ऋतुः। क्षत्रम्। द्रविणम्॥११॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 10; मन्त्र » 11
    Acknowledgment

    Meaning -
    O King conquer foes by advancing towards the south. May thou obtain, the knowledge conveyed in the Trishtup verse, the Brihat Sam, the fifteen fold praise-song, the summer season, the military force and riches.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top