Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 28/ मन्त्र 17
    ऋषिः - अश्विनावृषी देवता - अश्विनौ देवते छन्दः - भुरिग्जगती स्वरः - निषादः
    0

    दे॒वा दैव्या॒ होता॑रा दे॒वमिन्द्र॑मवर्द्धताम्। ह॒ताघ॑शꣳसा॒वाभा॑र्ष्टां॒ वसु॒ वार्या॑णि॒ यज॑मानाय शिक्षि॒तौ व॑सु॒वने॑ वसु॒धेय॑स्य वीतां॒ यज॑॥१७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वा। दैव्या॑। होता॑रा। दे॒वम्। इन्द्र॑म्। अ॒व॒र्द्ध॒ता॒म्। ह॒ताघ॑शꣳसा॒विति॑ ह॒तऽअ॑घशꣳसौ। आ। अ॒भा॒र्ष्टा॒म्। वसु॑। वार्या॑णि। यज॑मानाय। शि॒क्षि॒तौ। व॒सु॒वन॒ इति॑ वसु॒ऽवने॑। व॒सु॒धेय॒स्येति॑ वसु॒ऽधेय॑स्य। वी॒ता॒म्। यज॑ ॥१७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवा देव्या होतारा देवमिन्द्रमवर्धताम् । हताघशँसावाभार्ष्टाँवसु वार्याणि यजमानाय शिक्षितौ वसुवने वसुधेयस्य वीताँयज ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    देवा। दैव्या। होतारा। देवम्। इन्द्रम्। अवर्द्धताम्। हताघशꣳसाविति हतऽअघशꣳसौ। आ। अभार्ष्टाम्। वसु। वार्याणि। यजमानाय। शिक्षितौ। वसुवन इति वसुऽवने। वसुधेयस्येति वसुऽधेयस्य। वीताम्। यज॥१७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 28; मन्त्र » 17
    Acknowledgment

    Meaning -
    O learned person, just as pleasant air and fire, celebrated for their excellent attributes, the sustainers of the world heighten the radiant suns might, exterminate the diseases that kill the sinful thieves, and acting as monitors to the soul, procure us riches and drinkable water in Gods world, so shouldst thou perform yajna.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top