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  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 29
    ऋषिः - कुत्स ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - जगती स्वरः - निषादः
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    इ॒मां ते॒ धियं॒ प्र भ॑रे म॒हो म॒हीम॒स्य स्तो॒त्रे धि॒षणा॒ यत्त॑ऽआन॒जे।तमु॑त्स॒वे च॑ प्रस॒वे च॑ सास॒हिमिन्द्रं॑ दे॒वासः॒ शव॑सामद॒न्ननु॑॥२९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒माम्। ते॒। धिय॑म्। प्र। भ॒रे॒। म॒हः। म॒हीम्। अ॒स्य। स्तो॒त्रे। धि॒षणा॑। यत्। ते॒। आ॒न॒जे ॥ तम्। उ॒त्स॒व इत्यु॑त्ऽस॒वे। च॒। प्र॒स॒व इति॑ प्रऽस॒वे। च॒। सा॒स॒हिम्। स॒स॒हिमिति॑ सस॒हिम्। इन्द्र॑म्। दे॒वासः॑। शव॑सा। अ॒म॒द॒न्। अनु॑ ॥२९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमान्ते धियम्प्र भरे महो महीमस्य स्तोत्रे धिषणा यत्तऽआनजे । तमुत्सवे च प्रसवे च सासहिमिन्द्रन्देवासः शवसामदन्ननु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इमाम्। ते। धियम्। प्र। भरे। महः। महीम्। अस्य। स्तोत्रे। धिषणा। यत्। ते। आनजे॥ तम्। उत्सव इत्युत्ऽसवे। च। प्रसव इति प्रऽसवे। च। सासहिम्। ससहिमिति ससहिम्। इन्द्रम्। देवासः। शवसा। अमदन्। अनु॥२९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 29
    Acknowledgment

    Meaning -
    O king, I acknowledge this mighty wisdom of thine. My intellect manifests thee in praise. The learned on great festive occasions and child-birth bring joy unto thee, the master of intense endurance and the conqueror of foes with thy strength.

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