Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 8/ मन्त्र 33
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - गृहपतयो देवताः छन्दः - आर्षी अनुष्टुप्,आर्षी उष्णिक् स्वरः - गान्धारः, ऋषभः
    1

    आति॑ष्ठ वृत्रह॒न् रथं॑ यु॒क्ता ते॒ ब्रह्म॑णा॒ हरी॑। अ॒र्वा॒चीन॒ꣳ सु ते॒ मनो॒ ग्रावा॑ कृणोतु व॒ग्नुना॑। उ॒प॒या॒मगृ॑हीतो॒ऽसीन्द्रा॑य त्वा षोड॒शिन॑ऽए॒ष ते॒ योनि॒रिन्द्रा॑य त्वा षोड॒शिने॑॥३३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ। ति॒ष्ठ॒। वृ॒त्र॒ह॒न्निति॑ वृत्रऽहन्। रथ॑म्। यु॒क्ता। ते॒। ब्रह्म॑णा। हरी॒ऽइति॒ हरी॑। अ॒र्वा॒चीन॑म्। सु। ते॒। मनः॑। ग्रावा॑। कृ॒णो॒तु॒। व॒ग्नुना॑। उ॒प॒या॒मगृ॑हीत॒ इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। इन्द्रा॑य। त्वा॒। षो॒ड॒शिने॑। ए॒षः। ते॒। योनिः॑। इन्द्रा॑य। त्वा॒। षो॒ड॒शिने॑ ॥३३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आतिष्ठ वृत्रहन्रथँयुक्ता ते ब्रह्मणा हरी । अर्वाचीनँ सुते मनो ग्रावा कृणोतु वग्नुना । उपयामगृहीतो सीन्द्राय त्वा षोडशिनेऽएष ते योनिरिन्द्राय त्वा षोडशिने ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आ। तिष्ठ। वृत्रहन्निति वृत्रऽहन्। रथम्। युक्ता। ते। ब्रह्मणा। हरीऽइति हरी। अर्वाचीनम्। सु। ते। मनः। ग्रावा। कृणोतु। वग्नुना। उपयामगृहीत इत्युपयामऽगृहीतः। असि। इन्द्राय। त्वा। षोडशिने। एषः। ते। योनिः। इन्द्राय। त्वा। षोडशिने॥३३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 8; मन्त्र » 33
    Acknowledgment

    Meaning -
    O married man, thou art the dispeller of foes, and sprinkler of happiness like a cloud. In this chariot of thy life of a house-holder, possessing water and riches, are yoked two horses of restraint and attraction. Take a vow to lead the life of a householder. Appease thy drooping mind with the sayings of the Vedas. Thou art fully equipped with the requisites of married life. I order thee to lead married life full of prosperity and sixteen traits. This is thy home. I order thee to lead married life full of prosperity and sixteen traits.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top