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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 6
    ऋषिः - गयप्लात ऋषिः देवता - अदितिर्देवता छन्दः - भुरिक् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    सु॒त्रामा॑णं पृथि॒वीं द्याम॑ने॒हस॑ꣳ सु॒शर्मा॑ण॒मदि॑तिꣳ सु॒प्रणी॑तिम्।दै॒वीं नाव॑ꣳ स्वरि॒त्रामना॑गस॒मस्र॑वन्ती॒मा रु॑हेमा स्व॒स्तये॑॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒त्रामा॑ण॒मिति॑ सु॒ऽत्रामा॑णम्। पृ॒थि॒वीम्। द्याम्। अ॒ने॒हस॑म्। सु॒शर्म्मा॑ण॒मिति॑ सु॒ऽशर्मा॑णम्। अदि॑तिम्। सु॒प्रणी॑तिम्। सु॒प्रनी॑ति॒मिति॑ सु॒ऽप्रनी॑तिम्। दैवी॑म्। नाव॑म्। स्व॒रि॒त्रामिति॑ सुऽअरि॒त्राम्। अना॑गसम्। अस्र॑वन्तीम्। आ। रु॒हे॒म॒। स्व॒स्तये॑ ॥६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुत्रामाणम्पृथिवीन्द्यामनेहसँ सुशर्माणमदितिँ सुप्रणीतिम् । देवीन्नावँ स्वरित्रामनागसमस्रवन्तीमा रुहेमा स्वस्तये ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सुत्रामाणमिति सुऽत्रामाणम्। पृथिवीम्। द्याम्। अनेहसम्। सुशर्म्माणमिति सुऽशर्माणम्। अदितिम्। सुप्रणीतिम्। सुप्रनीतिमिति सुऽप्रनीतिम्। दैवीम्। नावम्। स्वरित्रामिति सुऽअरित्राम्। अनागसम्। अस्रवन्तीम्। आ। रुहेम। स्वस्तये॥६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 6
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    Meaning -
    Let us, for the sake of success and salvation, mount the boat with efficient ores, sailing across to safety, firm as earth, bright as heaven, inviolable, sweet shelter, unbreakable, well-guided, divine, faultless and free from leakage.

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