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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1046
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
8
अ꣣स्म꣡भ्य꣢मिन्दविन्द्रि꣣यं꣡ मधोः꣢꣯ पवस्व꣣ धा꣡र꣢या । प꣣र्ज꣡न्यो꣢ वृष्टि꣣मा꣡ꣳ इ꣢व ॥१०४६॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣स्म꣡भ्य꣢म् । इ꣣न्दो । इन्द्रिय꣢म् । म꣡धोः꣢꣯ । प꣣वस्व । धा꣡र꣢꣯या । प꣣र्ज꣡न्यः꣢ । पृ꣣ष्टिमा꣢न् । इ꣣व ॥१०४६॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्मभ्यमिन्दविन्द्रियं मधोः पवस्व धारया । पर्जन्यो वृष्टिमाꣳ इव ॥१०४६॥
स्वर रहित पद पाठ
अस्मभ्यम् । इन्दो । इन्द्रियम् । मधोः । पवस्व । धारया । पर्जन्यः । पृष्टिमान् । इव ॥१०४६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1046
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 10
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 10
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 10
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 10
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पदार्थ -
(इन्दो) हे आनन्दरसपूर्ण परमात्मन्! तू (मधोः-धारया) आनन्दरस की*24 धारा से (अस्मभ्यम्) हमारे*25 (इन्द्रियं पवस्व) प्राण को*26 प्राप्त हो—तृप्त कर (वृष्टिमान् पर्जन्यः-इव) जलवृष्टि करने वाले मेघ के समान—जैसे मेघ जलवृष्टि कर प्राण को तृप्त करता है ऐसे तू आनन्दवृष्टि करके तृप्त करा॥१०॥
टिप्पणी -
[*24. “अन्तो वै रसानां मधु” [जै॰ १.२२४]।] [*25. “षष्ठ्यर्थे चतुर्थीत्यषि” [अष्टा॰ २.३.६२ वा]।] [*26. “प्राणा इन्द्रियाणि” [काठ॰ ८.१]।]
विशेष - <br>
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