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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 331
ऋषिः - गौरिवीतिः शाक्त्यः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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च꣣क्रं꣡ यद꣢꣯स्या꣣प्स्वा꣡ निष꣢꣯त्तमु꣣तो꣡ तद꣢꣯स्मै꣣ म꣡ध्विच्च꣢꣯च्छद्यात् । पृ꣣थिव्या꣡मति꣢꣯षितं꣣ य꣢꣫दूधः꣣ प꣢यो꣣ गो꣡ष्वद꣢꣯धा꣣ ओ꣡ष꣢धीषु ॥३३१॥
स्वर सहित पद पाठच꣣क्र꣢म् । यत् । अ꣣स्या । अप्सु꣢ । आ । नि꣡ष꣢꣯त्तम् । नि । स꣣त्तम्। उत । उ । तत् । अ꣣स्मै । म꣡धु꣢꣯ । इत् । च꣣च्छद्यात् । पृथिव्या꣢म् । अ꣡ति꣢꣯षितम् । अ꣡ति꣢꣯ । सि꣣तम् । य꣢त् । ऊधरि꣡ति꣢ । प꣡यः꣢꣯ । गो꣡षु꣢꣯ । अ꣡द꣢꣯धाः । ओ꣡ष꣢꣯धीषु । ओ꣡ष꣢꣯ । धी꣣षु ॥३३१॥
स्वर रहित मन्त्र
चक्रं यदस्याप्स्वा निषत्तमुतो तदस्मै मध्विच्चच्छद्यात् । पृथिव्यामतिषितं यदूधः पयो गोष्वदधा ओषधीषु ॥३३१॥
स्वर रहित पद पाठ
चक्रम् । यत् । अस्या । अप्सु । आ । निषत्तम् । नि । सत्तम्। उत । उ । तत् । अस्मै । मधु । इत् । चच्छद्यात् । पृथिव्याम् । अतिषितम् । अति । सितम् । यत् । ऊधरिति । पयः । गोषु । अदधाः । ओषधीषु । ओष । धीषु ॥३३१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 331
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 9
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 10;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 9
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 10;
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पदार्थ -
(अस्य) इस परमात्मा का (यत्-चक्रम्) जो सृष्टिक्रम चक्र अर्थात् उत्पत्ति और जीवों के कर्मफल प्रदानरूप (अप्सु-आनिषत्तम्) व्याप्त परमाणुओं में समन्तरूप निगूढ़ हो चल रहा है (उत-उ) और भी (अस्मै) इस चक्र के लिये (मधु-इत्-चच्छद्यात्) प्राण को निहित किया है “प्राणो वै मधु” [श॰ १४.१.३.३०] (पृथिव्याम्) वह पृथिवी पर प्रथनशील सृष्टि में तथा प्रत्येक पार्थिव लोक में छोड़ दिया पुनः उससे (गोषु यत्-ऊधः) गौ आदि पशुओं में ऊधस्य—मधुररस दूध (ओषधीषु पयः) ओषधियों में रस धारण करता है।
भावार्थ - परमात्मा ने सृष्टिक्रमचक्र परमाणुओं में चलाया उसके लिये प्राण सम्यक् स्थिर किया, वह प्राण प्रथनशील सृष्टि में प्रथनशील लोकमात्र में छोड़ा, पुनः गौ आदि पशुओं में दूध और ओषधियों में अन्नरस मानवों के लिये धारण कराया, परमाणुओं में गतिप्रद विश्वप्राण और जीवों के लिये ओषधियों में जीवनप्राण परमात्मा ने धारण कराया, मानव के निर्वाहार्थ गौ आदि से दूध लेने और ओषधियों से अन्नरस लेने का विधान किया, अध्यात्म प्राण अध्यात्म जीवन धारण करने के लिये उपासक उस ऐसे प्राणदाता की उपासना करे॥९॥
विशेष - ऋषिः—गौरिवीतिः (सुन्दर वीत तृप्ति का साधनरस जिसके पास हो वह अध्यात्म रसवान्)॥<br>
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