Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 403
ऋषिः - सौभरि: काण्व: देवता - इन्द्रः छन्दः - ककुप् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
4

त्व꣡या꣢ ह स्विद्यु꣣जा꣢ व꣣यं꣡ प्रति꣢꣯ श्व꣣स꣡न्तं꣢ वृषभ ब्रुवीमहि । स꣣ꣳस्थे꣡ जन꣢꣯स्य꣣ गो꣡म꣢तः ॥४०३॥

स्वर सहित पद पाठ

त्व꣡या꣢꣯ । ह꣣ । स्वित् । युजा꣢ । व꣣य꣢म् । प्र꣡ति꣢꣯ । श्व꣣स꣡न्त꣢म् । वृ꣣षभ । ब्रुवीमहि । सँस्थे꣢ । स꣣म् । स्थे꣢ । ज꣡न꣢꣯स्य । गो꣡म꣢꣯तः ॥४०३॥


स्वर रहित मन्त्र

त्वया ह स्विद्युजा वयं प्रति श्वसन्तं वृषभ ब्रुवीमहि । सꣳस्थे जनस्य गोमतः ॥४०३॥


स्वर रहित पद पाठ

त्वया । ह । स्वित् । युजा । वयम् । प्रति । श्वसन्तम् । वृषभ । ब्रुवीमहि । सँस्थे । सम् । स्थे । जनस्य । गोमतः ॥४०३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 403
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 2; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 6;
Acknowledgment

पदार्थ -
(वृषभ) हे सुखवर्षक परमात्मन्! (त्वया युजा स्वित्-ह) निश्चित तुझ से युक्त होने वाले के साथ ही (श्वसन्तं प्रति ब्रुवीमहि) श्वास लेते हुए जैसे प्रबल पाप का प्रतिवाद करते हैं (गोमतः-जनस्य संस्थे) स्तुति वाणी वाले जन के संस्थान—ध्यान में बैठकर।

भावार्थ - स्तुति करने वाले उपासक के ध्यानासन पर बैठ ध्यान जमाकर तेरे से योग कर प्रबल पाप का भी प्रतिवाद प्रतीकार कर सकते हैं, अतः परमात्मा का ध्यान करना चाहिए॥५॥

विशेष - ऋषिः—सौभरिः (परमात्मस्वरूप को अपने अन्दर भली-भाँति भरण धारण करने से सम्पन्न)॥<br>

इस भाष्य को एडिट करें
Top