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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 429
ऋषिः - ऋण0त्रसदस्यू देवता - पवमानः सोमः छन्दः - द्विपदा विराट् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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प꣡व꣢स्व सोम म꣣हा꣡न्त्स꣢मु꣣द्रः꣢ पि꣣ता꣢ दे꣣वा꣢नां꣣ वि꣢श्वा꣣भि꣡ धाम꣢꣯ ॥४२९॥

स्वर सहित पद पाठ

प꣡व꣢꣯स्व । सो꣣म । महा꣢न् । स꣣मुद्रः꣢ । स꣣म् । उद्रः꣢ । पि꣣ता꣢ । दे꣣वा꣡ना꣢म् । वि꣡श्वा꣢꣯ । अ꣣भि꣢ । धा꣡म꣢꣯ ॥४२९॥


स्वर रहित मन्त्र

पवस्व सोम महान्त्समुद्रः पिता देवानां विश्वाभि धाम ॥४२९॥


स्वर रहित पद पाठ

पवस्व । सोम । महान् । समुद्रः । सम् । उद्रः । पिता । देवानाम् । विश्वा । अभि । धाम ॥४२९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 429
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 9;
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पदार्थ -
(सोम) हे मेरे उपासनारस! तू (महान्-समुद्रः) महान् समुन्दनशील हुआ (देवानां पिता) मेरी इन्द्रियों का पालक-अन्यथा विषयों में जाने से बचाने वाला (विश्वा धामअभि) मेरे समस्त जीवनकेन्द्रों के प्रति (पवस्व) चालू रह।

भावार्थ - उपासनारस महान् तरावट करने वाला हो। समस्त इन्द्रियों को अन्यथा चेष्टा से बचाने वाला समस्त जीवनकेन्द्रों में पहुँचकर जीवन और शान्ति देने वाला है॥३॥

विशेष - ऋषिः—ऋणत्रसदस्यू ऋषी (ऋणत्रास को क्षीण करने वाले जप और स्वाध्यायकर्ता)॥ देवता—पवमानः सोमः (आनन्दप्रद उपासनारस)॥ छन्दः—द्विपदा पंक्ति॥<br>

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