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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 471
ऋषिः - त्रित आप्त्यः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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ति꣣स्रो꣢꣫ वाच꣣ उ꣡दी꣢रते꣣ गा꣡वो꣢ मिमन्ति धे꣣न꣡वः꣢ । ह꣡रि꣢रेति꣣ क꣡नि꣢क्रदत् ॥४७१॥
स्वर सहित पद पाठति꣣स्रः꣢ । वा꣡चः꣢꣯ । उत् । ई꣣रते । गा꣡वः꣢꣯ । मि꣣मन्ति । धेन꣡वः꣢ । ह꣡रिः꣢꣯ । ए꣣ति । क꣡नि꣢꣯क्रदत् ॥४७१॥
स्वर रहित मन्त्र
तिस्रो वाच उदीरते गावो मिमन्ति धेनवः । हरिरेति कनिक्रदत् ॥४७१॥
स्वर रहित पद पाठ
तिस्रः । वाचः । उत् । ईरते । गावः । मिमन्ति । धेनवः । हरिः । एति । कनिक्रदत् ॥४७१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 471
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 1;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 1;
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पदार्थ -
(तिस्रः-वाचः) तीन वाणियाँ ‘अ, उ, म्’ ‘ओ३म्’ में वर्तमान जब (उदीरते) उच्चरित होती हैं (धेनवः-गावः-मिमन्ति) दूध देने वाली गौओं की भाँति मीठी बोली बोलती हैं (कनिक्रदत् हरिः-एति) कल्याण करता हुआ मधुर ध्वनि करता हुआ सोम—शान्तस्वरूप परमात्मा प्राप्त होता है “भद्रः सोमः पवमानां वृषा हरिः” [काठ॰]।
भावार्थ - उपासक के द्वारा ‘अ, उ, म्’ ‘ओ३म्’ तीन मात्रासमूह या तीनों मात्राएँ उच्चरित हुई दुधारु गौओं के रूप में शब्द करती हैं तो कल्याणकर शान्त परमात्मा मधुर ध्वनि करता हुआ उपासक के अन्दर प्राप्त होता है॥५॥
विशेष - ऋषिः—त्रितः (तीन को लेकर उपासना करने वाला उपासक)॥<br>
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