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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 52
ऋषिः - मेधातिथि0मेध्यातिथी काण्वौ
देवता - इन्द्रः
छन्दः - बृहती
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
5
अ꣢ध꣣ ज्मो꣡ अध꣢꣯ वा दि꣣वो꣡ बृ꣢ह꣣तो꣡ रो꣢च꣣ना꣡दधि꣢꣯ । अ꣣या꣡ व꣢र्धस्व त꣣꣬न्वा꣢꣯ गि꣣रा꣢꣫ ममा जा꣣ता꣡ सु꣢क्रतो पृण ॥५२॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡ध꣢꣯ । ज्मः । अ꣡ध꣢꣯ । वा꣣ । दिवः꣢ । बृ꣣हतः꣢ । रो꣣चना꣢त् । अधि꣢꣯ । अ꣣या꣢ । व꣣र्धस्व । त꣡न्वा꣢꣯ । गि꣣रा꣢ । म꣡म꣢꣯ । आ । जा꣣ता꣢ । सु꣢क्रतो । सु । क्रतो पृण ॥५२॥
स्वर रहित मन्त्र
अध ज्मो अध वा दिवो बृहतो रोचनादधि । अया वर्धस्व तन्वा गिरा ममा जाता सुक्रतो पृण ॥५२॥
स्वर रहित पद पाठ
अध । ज्मः । अध । वा । दिवः । बृहतः । रोचनात् । अधि । अया । वर्धस्व । तन्वा । गिरा । मम । आ । जाता । सुक्रतो । सु । क्रतो पृण ॥५२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 52
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 5;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 5;
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पदार्थ -
(जात सुक्रतो) हे प्रसिद्ध तथा सुकर्मवाले! “क्रतुः कर्मनाम” [निघं॰ २.१] तू (अध ज्मः-अधःवा बृहतःरोचनात्-दिवः-अधि) अथवा पार्थिव वस्तुओं में वर्तमान “ज्मा पृथिवी” [निघं॰ १.१] अथवा महान् प्रकाशमान द्युलोक में द्युलोकस्थ तारामण्डल में वर्तमान तेरे गुणों से (मम गिरा) मेरी स्तुति से (अया तन्वा वर्धस्व) इस अपनी द्यावापृथिवीमयी एक पाद काया से “पादोऽस्य विश्वा भूतानि” [ऋ॰ १०.९०.३] मेरे अन्दर बढ़कर साक्षात् हो (पृण) इस प्रकार मुझे तृप्त कर।
भावार्थ - परमात्मन्! पृथिवी की वनस्पतियों, सोना-चाँदी रत्नों, मनुष्य पशु-पक्षी सरिसृपों, सरित् सागर पर्वतों में और द्युलोक के विविध ग्रहतारों में तेरे कृतिगुणों के दर्शन से द्यावापृथिवीमयी सृष्टिरूप तेरी एक पाद काया द्वारा तेरे अनन्त स्वरूपज्ञान से और मेरे द्वारा की गई स्तुति से मेरे अन्दर बढ़-बढ़ कर साक्षात् होता रहे मुझे प्राप्त कर॥८॥
विशेष - ऋषिः—मेधातिथिर्मेध्यातिथिश्च (मेधा से परमात्मा में अतनगमन प्रवेश करने वाला या पवित्र हो गति प्रवेश करनेवाला उपासक)॥<br>
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