Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 553
ऋषिः - प्रजापतिर्वैश्वामित्रो वाच्यो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
7

प्र꣡ सु꣢न्वा꣣ना꣡यास्यान्ध꣢꣯सो꣣ म꣢र्तो꣣ न꣡ व꣢ष्ट꣣ त꣡द्वचः꣢꣯ । अ꣢प꣣ श्वा꣡न꣢मरा꣣ध꣡स꣢ꣳ ह꣣ता꣢ म꣣खं꣡ न भृग꣢꣯वः ॥५५३॥

स्वर सहित पद पाठ

प्र꣢ । सु꣣न्वाना꣡य꣢ । अ꣡न्ध꣢꣯सः । म꣡र्तः꣢꣯ । न । व꣣ष्ट । त꣢त् । व꣡चः꣢꣯ । अ꣡प꣢꣯ । श्वा꣡न꣢꣯म् । अ꣣राध꣡स꣢म् । अ꣣ । राध꣡स꣢म् । ह꣣त꣢ । म꣣ख꣢म् । न । भृ꣡ग꣢꣯वः ॥५५३॥


स्वर रहित मन्त्र

प्र सुन्वानायास्यान्धसो मर्तो न वष्ट तद्वचः । अप श्वानमराधसꣳ हता मखं न भृगवः ॥५५३॥


स्वर रहित पद पाठ

प्र । सुन्वानाय । अन्धसः । मर्तः । न । वष्ट । तत् । वचः । अप । श्वानम् । अराधसम् । अ । राधसम् । हत । मखम् । न । भृगवः ॥५५३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 553
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 9
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 8;
Acknowledgment

पदार्थ -
(अन्धसः) आध्यानीय—आराधनीय शान्तस्वरूप परमात्मा को (प्रसुन्वानाय) प्रसिद्ध करने—साक्षात् करने वाले मुमुक्षु का “षष्ठ्यर्थे चतुर्थी वक्तव्या” (तद्वचः) परमात्मविषयक वचन (मर्त्तः) जो मनुष्य (न वष्ट) “अवष्ट-छन्दस्यमाङ्योगेऽपि-अडभावः” नहीं चाहता है अपितु निन्दक नास्तिक नास्तिकभाव से अनादर करता है (अराधसं श्वानम्-अपहत) उस राधना—उपासना न करने वाले अपितु कृतघ्न या कुत्ते के समान कामभाव को नष्ट करो (मखं न भृगवः) ज्ञानाग्नि से जाज्वल्यमान आत्मा जिनका हो ऐसे ज्ञानीजन “भृगुर्भृज्यमानो न देहे” [निरु॰ ३.१७] मख—ज्ञानरहित गतिकर्म “मख गत्यर्थः” [भ्वादि॰] को जैसे दूर करते हैं, ऐसे करें।

भावार्थ - आध्यानीय—आराधनीय शान्त परमात्मा का साक्षात् करने वाले मुमुक्षु उपासक के परमात्मसम्बन्धी उपदेश को जो नहीं सुनना चाहता है, अपितु विरोध करता है, उस ऐसे नास्तिक एवं कामी या कामभाव को कुत्ते के समान अलग कर दें। जैसे ज्ञानीजन ज्ञानहीन कर्म को अपने से अलग कर देते हैं॥९॥

विशेष - ऋषिः—प्रजापतिर्वैश्वामित्रः (सर्वमित्र से सम्बद्ध निज इन्द्रियों का पालक रक्षक संयमी उपासक)॥ छन्दः—अनुष्टुप्।<br>

इस भाष्य को एडिट करें
Top