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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 577
ऋषिः - द्वितः आप्त्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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प꣢रि꣣ को꣡शं꣢ मधु꣣श्चु꣢त꣣ꣳ सो꣡मः꣢ पुना꣣नो꣡ अ꣢र्षति । अ꣣भि꣢꣫ वाणी꣣रृ꣡षी꣢णाꣳ स꣣प्ता꣡ नू꣢षत ॥५७७॥

स्वर सहित पद पाठ

प꣡रि꣢꣯ । को꣡श꣢꣯म् । म꣣धुश्चु꣡त꣢म् । म꣣धु । श्चु꣡त꣢꣯म् । सो꣡मः꣢꣯ । पु꣣नानः꣢ । अ꣣र्षति । अभि꣢ । वा꣡णीः꣢꣯ । ऋ꣡षी꣢꣯णाम् । स꣣प्त । नू꣢षत ॥५७७॥


स्वर रहित मन्त्र

परि कोशं मधुश्चुतꣳ सोमः पुनानो अर्षति । अभि वाणीरृषीणाꣳ सप्ता नूषत ॥५७७॥


स्वर रहित पद पाठ

परि । कोशम् । मधुश्चुतम् । मधु । श्चुतम् । सोमः । पुनानः । अर्षति । अभि । वाणीः । ऋषीणाम् । सप्त । नूषत ॥५७७॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 577
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 12
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 10;
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पदार्थ -
शान्तस्वरूप परमात्मा (पुनानः) अध्येष्यमाण—मनन निदिध्यासन में आता हुआ (मधुश्चुतं कोशम्) ब्रह्मानन्दरूप मधु के क्षरणस्थान हृदयकोष्ठ को (परि-अर्षति) परिप्राप्त होता है, जिसको (ऋषीणां सप्त वाणीः) मन्त्र दृष्टियों के सात गायत्री आदि छन्दों से युक्त वाणियाँ (अभि-अनूषत) स्तुति करती हैं।

भावार्थ - शान्तस्वरूप परमात्मा मनन निदिध्यासन में आया हुआ ब्रह्मानन्दरस के स्रवणस्थान हृदय कोष्ठ में प्राप्त होता है जिसको मन्त्र दृष्टियों के गायत्री आदि सात छन्दों से युक्त वाणियाँ प्रशंसित करती हैं॥१२॥

विशेष - ऋषिः—द्वित आप्तयः (सर्वत्र आप्त परमात्मा दो प्रकारों या दो प्रयोजनों—आनन्द और ज्ञान या भोग और अपवर्ग को लक्ष्य कर स्तुति करने वाला)॥<br>

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