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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 630
ऋषिः - सार्पराज्ञी
देवता - सूर्यः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - आरण्यं काण्डम्
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आ꣡यं गौः पृश्नि꣢꣯रक्रमी꣣द꣡स꣢दन्मा꣣त꣡रं꣢ पु꣣रः꣢ । पि꣣त꣡रं꣢ च प्र꣣य꣡न्त्स्वः꣢ ॥६३०॥
स्वर सहित पद पाठआ꣢ । अ꣣य꣢म् । गौः । पृ꣡श्निः꣢꣯ । अ꣣क्रमीत् । अ꣡स꣢꣯दत् । मा꣣त꣡र꣢म् । पु꣣रः꣢ । पि꣣त꣡र꣢म् । च꣣ । प्रय꣢न् । प्र꣣ । य꣢न् । स्व३रि꣡ति꣢ ॥६३०॥
स्वर रहित मन्त्र
आयं गौः पृश्निरक्रमीदसदन्मातरं पुरः । पितरं च प्रयन्त्स्वः ॥६३०॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । अयम् । गौः । पृश्निः । अक्रमीत् । असदत् । मातरम् । पुरः । पितरम् । च । प्रयन् । प्र । यन् । स्व३रिति ॥६३०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 630
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 5; मन्त्र » 4
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 5;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 5; मन्त्र » 4
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 5;
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पदार्थ -
(अयम्) यह (गौः) स्तोता—उपासक “गौः स्तोतृनाम” [निघं॰ ३.१६] (पृश्निः) परमात्मज्योति का स्पर्श करने वाला—प्राप्त करने वाला उपासक आत्मा “पृश्निः संस्पृष्टा भासम्” [निरु॰ २.१४] (आ-अक्रमीत्) संसार में आया—आता है (पुरः-मातरं पितरं च-आसदत्) प्रथम माता और पिता को प्राप्त होता है पुनः (प्रयन्) प्रगति करता हुआ (स्वः) मोक्षधाम को पहुँचाता है।
भावार्थ - यह स्तुतिकर्ता उपासक परमात्मज्योति को स्पर्श करने वाले प्राप्त करने वाला आत्मा—जीवात्मा संसार में अवतरण करता है प्रथम माता पिता को प्राप्त होता है, पिता को बीजभाव से माता का गर्भधारण से पुनः उत्पन्न होकर जीवन में प्रगति करता हुआ—उन्नति करता हुआ नितान्त सुख स्थान मोक्षधाम को प्राप्ता हो जाता है॥४॥
टिप्पणी -
[*52. “वाग्वै सर्पराज्ञी” [कौ॰ २७.४]।] [*53. खण्ड के अन्त तक।]
विशेष - ऋषिः—सार्पराज्ञी (वाक्शक्तिसम्पन्न व्यक्ति*52)॥ छन्दः—गायत्री*53॥<br>
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