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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 661
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
6
तं꣡ त्वा꣢ स꣣मि꣡द्भि꣢रङ्गिरो घृ꣣ते꣡न꣢ वर्धयामसि । बृ꣣ह꣡च्छो꣢चा यविष्ठ्य ॥६६१॥
स्वर सहित पद पाठत꣢म् । त्वा꣣ । समि꣡द्भिः꣢ । सम् । इ꣡द्भिः꣢꣯ । अ꣣ङ्गिरः । घृ꣡ते꣢न । व꣣र्द्धयामसि । बृह꣢त् । शो꣣च । यविष्ठ्य ॥६६१॥
स्वर रहित मन्त्र
तं त्वा समिद्भिरङ्गिरो घृतेन वर्धयामसि । बृहच्छोचा यविष्ठ्य ॥६६१॥
स्वर रहित पद पाठ
तम् । त्वा । समिद्भिः । सम् । इद्भिः । अङ्गिरः । घृतेन । वर्द्धयामसि । बृहत् । शोच । यविष्ठ्य ॥६६१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 661
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(अङ्गिरः-यविष्ठ्य) हे अङ्गों को प्रेरित करने वाले अत्यन्त मिलाने वालों में श्रेष्ठ परमात्मन्! (तं त्वा) उस तुझ को (समद्भिः-घृतेन वर्धयामसि) प्राणों से प्राणायामों—इन्द्रियों के सद्व्यवहारों से “प्राणा वै समिधः” [ऐ॰ २.४] और आत्मतेज से बढ़ाते हैं (बृहत्-शोच) तू हमारे अन्दर बहुत प्रकाशित हो।
भावार्थ - अङ्गों को प्रेरित करनेवाला मेल करनेवालों में सबसे अधिक मिलनसार परमात्मा को प्राणपण से प्राणायामों इन्द्रिय संयमों और स्वकीय आत्मभाव से अपने अंदर बढ़ावें तो वह हमारे अंदर बहुत प्रकाशमानरूप में साक्षात् होता है॥२॥
विशेष - <br>
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