Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 849
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः देवता - मित्रावरुणौ छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
4

क꣣वी꣡ नो꣢ मि꣣त्रा꣡वरु꣢꣯णा तुविजा꣣ता꣡ उ꣢रु꣣क्ष꣡या꣢ । द꣡क्षं꣢ दधाते अ꣣प꣡स꣢म् ॥८४९॥

स्वर सहित पद पाठ

क꣣वी꣡इति꣢ । नः꣣ । मित्रा꣢ । मि꣣ । त्रा꣢ । व꣡रु꣢꣯णा । तु꣣विजातौ꣢ । तु꣣वि । जातौ꣢ । उ꣣रु꣡क्ष꣢या । उ꣣रु । क्ष꣡या꣢꣯ । द꣡क्ष꣢꣯म् । द꣣धातेइ꣡ति꣢ । अ꣣प꣡स꣢म् ॥८४९॥


स्वर रहित मन्त्र

कवी नो मित्रावरुणा तुविजाता उरुक्षया । दक्षं दधाते अपसम् ॥८४९॥


स्वर रहित पद पाठ

कवीइति । नः । मित्रा । मि । त्रा । वरुणा । तुविजातौ । तुवि । जातौ । उरुक्षया । उरु । क्षया । दक्षम् । दधातेइति । अपसम् ॥८४९॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 849
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 2; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
Acknowledgment

पदार्थ -
कवी क्रान्तदर्शी—सर्वज्ञ (तुविजातौ) बहुत प्रकार से साक्षात् होने वाला (उरुक्षया) महान् से महान् पदार्थों का निवास जहाँ हो ऐसा परमात्मा (मित्रावरुणा) प्रेरक और अङ्गीकारकर्ता (नः-दक्षम्-अपसं दधाते) हम उपासकों के लिए आत्मबल और कर्मशक्ति को धारण कराता है।

भावार्थ - अन्तर्यामी सर्वज्ञ तथा बहुत प्रकार से साक्षात् होने वाला महान् से महान् पदार्थों का निवासस्थान परमात्मा हम उपासकों के लिए आत्मबल और कर्मशक्ति को धारण कराता है॥३॥

विशेष - <br>

इस भाष्य को एडिट करें
Top