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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 858
ऋषिः - सप्तर्षयः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - द्विपदा विराट्
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
4
नृ꣡भि꣢र्येमा꣣णो꣡ ह꣢र्य꣣तो꣡ वि꣢चक्ष꣣णो꣡ राजा꣢꣯ दे꣣वः꣡ स꣢मु꣣꣬द्र्यः꣢꣯ ॥८५८॥
स्वर सहित पद पाठनृ꣡भिः꣢꣯ । ये꣣मानः꣢ । ह꣣र्यतः꣢ । वि꣣चक्षणः꣢ । वि꣣ । चक्षणः꣢ । रा꣡जा꣢꣯ । दे꣣वः꣢ । स꣣मुद्र्यः꣢ । स꣢म् । उद्र्यः꣢ ॥८५८॥
स्वर रहित मन्त्र
नृभिर्येमाणो हर्यतो विचक्षणो राजा देवः समुद्र्यः ॥८५८॥
स्वर रहित पद पाठ
नृभिः । येमानः । हर्यतः । विचक्षणः । वि । चक्षणः । राजा । देवः । समुद्र्यः । सम् । उद्र्यः ॥८५८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 858
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(नृभिः-येमाणः) मुमुक्षुओं के द्वारा “नरो ह वै देवविशः” [जै॰ १.८९] यम आदि साधना में आता हुआ (हर्यतः) कमनीय “हर्यति प्रेप्साकर्मा” [निरु॰ २.१०] (विचक्षणः) विशेषद्रष्टा (राजा) सर्वत्र राजमान (देवः) सुखदाता परमात्मा (समुद्र्यः) हृदयावकाश में साक्षात् होने योग्य है साक्षात् किया जाता है।
भावार्थ - कमनीय सर्वद्रष्टा सर्वत्र राजमान सुखदाता परमात्मा मुमुक्षुओं द्वारा साधना में लाया हुआ हृदयावकाश में साक्षात् होता है॥३॥
विशेष - <br>
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