Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 13

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 13/ मन्त्र 6
    सूक्त - अप्रतिरथः देवता - इन्द्रः छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् सूक्तम् - एकवीर सूक्त

    इ॒मं वी॒रमनु॑ हर्षध्वमु॒ग्रमिन्द्रं॑ सखायो॒ अनु॒ सं र॑भध्वम्। ग्रा॑म॒जितं॑ गो॒जितं॒ वज्र॑बाहुं॒ जय॑न्त॒मज्म॑ प्रमृ॒णन्त॒मोज॑सा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒मम्। वी॒रम्। अनु॑। ह॒र्ष॒ध्व॒म्। उ॒ग्रम्। इन्द्र॑म्। स॒खा॒यः॒। अनु॑। सम्। र॒भ॒ध्व॒म्। ग्रा॒म॒ऽजित॑म्। गो॒ऽजित॑म्। वज्र॑ऽबाहुम्। जय॑न्तम्। अज्म॑। प्र॒ऽमृ॒णन्त॑म्। ओज॑सा ॥१३.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमं वीरमनु हर्षध्वमुग्रमिन्द्रं सखायो अनु सं रभध्वम्। ग्रामजितं गोजितं वज्रबाहुं जयन्तमज्म प्रमृणन्तमोजसा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमम्। वीरम्। अनु। हर्षध्वम्। उग्रम्। इन्द्रम्। सखायः। अनु। सम्। रभध्वम्। ग्रामऽजितम्। गोऽजितम्। वज्रऽबाहुम्। जयन्तम्। अज्म। प्रऽमृणन्तम्। ओजसा ॥१३.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 13; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    (सखायः) हे मित्रो ! (इमम्) इस (वीरम् अनु) वीर [सेनापति] के साथ (हर्षध्वम्) हर्ष करो, (ग्रामजितम्) शत्रुओं के समूह को जीतनेवाले, (गोजितम्) उनकी भूमि को जीतनेवाले, (वज्रबाहुम्) भुजाओं में शस्त्र रखनेवाले, (जयन्तम्) विजयी, (ओजसा) [अपने शरीर, बुद्धि और सेना के] बल से (अज्म) संग्राम को (प्रमृणन्तम्) मिटानेवाले, (उग्रम्) तेजस्वी (इन्द्रम् अनु) इन्द्र [महाप्रतापी सेनाध्यक्ष] के साथ (सम्) अच्छे प्रकार (रभध्वम्) उद्योग करो ॥६॥

    भावार्थ - युद्धकुशल सैनिक लोग चतुर सेनापति के अनुगामी होकर शत्रुओं का राज्य आदि लेकर प्रजापालन करें ॥६॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top