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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 124

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 124/ मन्त्र 3
    सूक्त - वामदेवः देवता - इन्द्रः छन्दः - पादनिचृद्गायत्री सूक्तम् - सूक्त-१२४

    अ॒भी षु णः॒ सखी॑नामवि॒ता ज॑रितॄ॒णाम्। श॒तं भ॑वास्यू॒तिभिः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । सु । न॒: । सखी॑नाम् । अ॒वि॒ता । ज॒रि॒तॄ॒णाम् ॥ श॒तम् । भ॒वा॒सि॒ । ऊ॒तिऽभि॑: ॥१२४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभी षु णः सखीनामविता जरितॄणाम्। शतं भवास्यूतिभिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । सु । न: । सखीनाम् । अविता । जरितॄणाम् ॥ शतम् । भवासि । ऊतिऽभि: ॥१२४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 124; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    [हे राजन् !] (सखीनाम्) [अपने] सखाओं और (जरितॄणाम्) स्तुति करनेवाले (नः) हम लोगों का (सु) उत्तम (अविता) रक्षक होकर तू (शतम्) सौ प्रकार से (ऊतिभिः) रक्षाओं के साथ (अभि) सामने (भवासि) होवे ॥३॥

    भावार्थ - जिस प्रकार प्रजागण राजा के हित के लिये प्रयत्न करें, वैसे ही राजा भी उनका हित करे ॥३॥

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