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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 69

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 69/ मन्त्र 3
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६९

    सु॑त॒पाव्ने॑ सु॒ता इ॒मे शुच॑यो यन्ति वी॒तये॑। सोमा॑सो॒ दध्या॑शिरः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒त॒ऽपाव्ने॑ । सु॒ता: । इ॒मे । शुच॑य: । य॒न्ति॒ । वी॒तये॑ ॥ सोमा॑स: । दधि॑ऽआशिर: ॥६९.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुतपाव्ने सुता इमे शुचयो यन्ति वीतये। सोमासो दध्याशिरः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुतऽपाव्ने । सुता: । इमे । शुचय: । यन्ति । वीतये ॥ सोमास: । दधिऽआशिर: ॥६९.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 69; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (सुतपाव्ने) ऐश्वर्य के रक्षक मनुष्य को (वीतये) भोग के लिये (इमे) यह (सुताः) निचोड़े हुए (शुचयः) शुद्ध (दध्याशिरः) पोषक पदार्थों के यथावत् सेवन [वा परिपक्व अर्थात् दृढ़] करनेवाले (सोमासः) सोमरस [तत्त्व वा अमृतरस] (यन्ति) पहुँचते हैं ॥३॥

    भावार्थ - जो मनुष्य अपने और प्रजा के ऐश्वर्य की रक्षा कर सकता है, वही संसार में वृद्धिकारक सिद्धान्तों को दृढ़ जमाता है ॥३॥

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