Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 11

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 11/ मन्त्र 7
    सूक्त - भृग्वङ्गिराः देवता - इन्द्रः, अनड्वान् छन्दः - त्र्यवसानाषट्पदानुष्टब्गर्भोपरिष्टाज्जगतीनिचृत्शक्वरी सूक्तम् - अनड्वान सूक्त

    इन्द्रो॑ रू॒पेणा॒ग्निर्वहे॑न प्र॒जाप॑तिः परमे॒ष्ठी वि॒राट्। वि॒श्वान॑रे अक्रमत वैश्वान॒रे अ॑क्रमतान॒डुह्य॑क्रमत। सोऽदृं॑हयत॒ सोऽधा॑रयत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑: । रू॒पेण॑ । अ॒ग्नि: । वहे॑न । प्र॒जाऽप॑ति: । प॒र॒मे॒ऽस्थी । वि॒ऽराट् । वि॒श्वान॑रे । अ॒क्र॒म॒त॒ । वै॒श्वा॒न॒रे । अ॒क्र॒म॒त॒ । अ॒न॒डुहि॑ । अ॒क्र॒म॒त॒ । स: । अ॒दृं॒ह॒य॒त॒ । स: । अ॒धा॒र॒य॒त॒ ॥११.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रो रूपेणाग्निर्वहेन प्रजापतिः परमेष्ठी विराट्। विश्वानरे अक्रमत वैश्वानरे अक्रमतानडुह्यक्रमत। सोऽदृंहयत सोऽधारयत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र: । रूपेण । अग्नि: । वहेन । प्रजाऽपति: । परमेऽस्थी । विऽराट् । विश्वानरे । अक्रमत । वैश्वानरे । अक्रमत । अनडुहि । अक्रमत । स: । अदृंहयत । स: । अधारयत ॥११.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 11; मन्त्र » 7

    पदार्थ -
    (प्रजापतिः) उत्पन्न पदार्थों का रक्षक, (परमेष्ठी) ऊँचे स्थान पर ठहरनेवाला, (विराट्) विशेष प्रकाशमान, (अग्निः) व्यापक वा अग्निरूप (इन्द्रः) सूर्य (रूपेण) अपने रूप से और (वहेन) चलाने के सामर्थ्य से (विश्वानरे) सबके नायक परमात्मा में (अक्रमत) प्रविष्ट हुआ, (वैश्वानरे) सब नायकों के हितकारी परमेश्वर में (अक्रमत्) प्राप्त हुआ, (अनडुहि) जीवन पहुँचानेवाले जगदीश्वर में (अक्रमत्) प्रविष्ट हुआ है, (सः) उस [जगदीश्वर] ने [सूर्य को] (अदृंहयत) दृढ़ किया और (सः) उसने ही (अधारयत) धारण किया है ॥७॥

    भावार्थ - सूर्य अर्थात् सूर्य आदि बड़े-बड़े लोक अपने आकर्षण आदि शक्तियों के साथ सर्वनियन्ता जगदीश्वर में स्थित हैं, वही उनका धारण-पोषण करता है। उसी की उपासना हम सदा करें ॥७॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top