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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 8/ मन्त्र 6
    सूक्त - भृग्वङ्गिराः देवता - सर्वशीर्षामयापाकरणम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - यक्ष्मनिवारण सूक्त

    यस्य॑ भी॒मः प्र॑तीका॒श उ॑द्वे॒पय॑ति॒ पूरु॑षम्। त॒क्मानं॑ वि॒श्वशा॑रदं ब॒हिर्निर्म॑न्त्रयामहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यस्य॑ । भी॒म: । प्र॒ति॒ऽका॒श: । उ॒त्ऽवे॒पय॑ति । पुरु॑षम् । त॒क्मान॑म् । वि॒श्वऽशा॑रदम् । ब॒हि: । नि: । म॒न्त्र॒या॒म॒हे॒ ॥१३.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्य भीमः प्रतीकाश उद्वेपयति पूरुषम्। तक्मानं विश्वशारदं बहिर्निर्मन्त्रयामहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यस्य । भीम: । प्रतिऽकाश: । उत्ऽवेपयति । पुरुषम् । तक्मानम् । विश्वऽशारदम् । बहि: । नि: । मन्त्रयामहे ॥१३.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 8; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    (यस्य) जिस [ज्वर] का (भीमः) भयानक (प्रतिकाशः) स्वरूप (पुरुषम्) पुरुष को (उद्वेपयति) कँपा देता है। [उस] (विश्वशारदम्) सब शरीर में चकत्ते करनेवाले (तक्मानम्) ज्वर को (बहिः) बाहिर... म० ५ ॥६॥

    भावार्थ - जैसे उत्तम वैद्य निदान पूर्व बाहिरी और भीतरी रोगों का नाश करके मनुष्यों को हृष्ट-पुष्ट बनाता है, वैसे ही विद्वान् लोग विचारपूर्वक अविद्या को मिटा कर आनन्दित होते हैं ॥१॥ यही भावार्थ २ से २२ तक अगले मन्त्रों में जानो ॥

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