Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 28

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 28/ मन्त्र 4
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - दर्भमणिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दर्भमणि सूक्त

    भि॒न्द्धि द॑र्भ स॒पत्ना॑नां॒ हृद॑यं द्विष॒तां म॑णे। उ॒द्यन्त्वच॑मिव॒ भूम्याः॒ शिर॑ ए॒षां वि पा॑तय ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भि॒न्द्धि। द॒र्भ॒। स॒ऽपत्ना॑नाम्। हृद॑यम्। द्वि॒ष॒ताम्। म॒णे॒। उ॒त्ऽयन्। त्वच॑म्ऽइव। भूम्याः॑। शिरः॑। ए॒षाम्। वि। पा॒त॒य॒ ॥२८.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भिन्द्धि दर्भ सपत्नानां हृदयं द्विषतां मणे। उद्यन्त्वचमिव भूम्याः शिर एषां वि पातय ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भिन्द्धि। दर्भ। सऽपत्नानाम्। हृदयम्। द्विषताम्। मणे। उत्ऽयन्। त्वचम्ऽइव। भूम्याः। शिरः। एषाम्। वि। पातय ॥२८.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 28; मन्त्र » 4

    Meaning -
    O Darbha, O Jewel, break asunder the heart core of the rival and jealous negative forces and, rising like the sun removing the dark veil of the earth, throw off the umbrella cover of these enemy forces.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top