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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 20/ मन्त्र 8
    ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः देवता - ऋभवः छन्दः - पिपीलिकामध्यानिचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    अधा॑रयन्त॒ वह्न॒योऽभ॑जन्त सुकृ॒त्यया॑। भा॒गं दे॒वेषु॑ य॒ज्ञिय॑म्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अधा॑रयन्त । वह्न॑यः । अभ॑जन्त । सु॒ऽकृ॒त्यया॑ । भा॒गम् । दे॒वेषु॑ । य॒ज्ञिय॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अधारयन्त वह्नयोऽभजन्त सुकृत्यया। भागं देवेषु यज्ञियम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अधारयन्त। वह्नयः। अभजन्त। सुऽकृत्यया। भागम्। देवेषु। यज्ञियम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 20; मन्त्र » 8
    अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 2; मन्त्र » 3

    भावार्थ - माणसांनी चांगले कर्म व विद्वानांची संगती व पूर्वोक्त यज्ञाच्या अनुष्ठानाने व्यवहार सुखापासून मोक्षसुखापर्यंत प्राप्ती केली पाहिजे. ॥ ८ ॥

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