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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 4/ मन्त्र 1
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः देवता - इन्द्र: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    सु॒रू॒प॒कृ॒त्नुमू॒तये॑ सु॒दुघा॑मिव गो॒दुहे॑। जु॒हू॒मसि॒ द्यवि॑द्यवि॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒रू॒प॒ऽकृ॒त्नुम् । ऊ॒तये॑ । सु॒दुघा॑म्ऽइव । गो॒ऽदुहे॑ । जु॒हू॒मसि॑ । द्यवि॑ऽद्यवि ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुरूपकृत्नुमूतये सुदुघामिव गोदुहे। जुहूमसि द्यविद्यवि॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुरूपऽकृत्नुम्। ऊतये। सुदुघाम्ऽइव। गोऽदुहे। जुहूमसि। द्यविऽद्यवि॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
    अष्टक » 1; अध्याय » 1; वर्ग » 7; मन्त्र » 1

    भावार्थ - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशी माणसे गायीचे दूध प्राप्त करून आपले प्रयोजन सिद्ध करतात तसेच विद्वान धार्मिक पुरुषही परमेश्वराच्या उपासनेने श्रेष्ठ विद्या इत्यादी गुणांना प्राप्त करून आपापल्या कार्यांना पूर्ण करतात. ॥ १ ॥

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