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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 4/ मन्त्र 2
    ऋषिः - मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः देवता - इन्द्र: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    उप॑ नः॒ सव॒ना ग॑हि॒ सोम॑स्य सोमपाः पिब। गो॒दा इद्रे॒वतो॒ मदः॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑ । नः॒ । सव॑ना । आ । ग॒हि॒ । सोम॑स्य । सो॒म॒ऽपाः॒ । पि॒ब॒ । गो॒ऽदाः । इत् । रे॒वतः॑ । मदः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उप नः सवना गहि सोमस्य सोमपाः पिब। गोदा इद्रेवतो मदः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उप। नः। सवना। आ। गहि। सोमस्य। सोमऽपाः। पिब। गोऽदाः। इत्। रेवतः। मदः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
    अष्टक » 1; अध्याय » 1; वर्ग » 7; मन्त्र » 2

    भावार्थ - ज्या प्रकारे सर्व जीव सूर्याच्या प्रकाशात आपापले कर्म करण्यास प्रवृत्त होतात, त्याप्रकारे रात्री तसे कार्य सुखपूर्वक करू शकत नाहीत. ॥ २ ॥

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