Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 52 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 52/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - उषाः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    प्रति॒ ष्या सू॒नरी॒ जनी॑ व्यु॒च्छन्ती॒ परि॒ स्वसुः॑। दि॒वो अ॑दर्शि दुहि॒ता ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्रति॑ । स्या । सू॒नरी॑ । जनी॑ । वि॒ऽउ॒च्छन्ती॑ । परि॑ । स्वसुः॑ । दि॒वः । अ॒द॒र्शि॒ । दु॒हि॒ता ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रति ष्या सूनरी जनी व्युच्छन्ती परि स्वसुः। दिवो अदर्शि दुहिता ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रति। स्या। सूनरी। जनी। विऽउच्छन्ती। परि। स्वसुः। दिवः। अदर्शि। दुहिता ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 52; मन्त्र » 1
    अष्टक » 3; अध्याय » 8; वर्ग » 3; मन्त्र » 1

    भावार्थ - जी उषेप्रमाणे असते. तीच स्त्री श्रेष्ठ असते. ॥ १ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top