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  • यजुर्वेद - अध्याय 14/ मन्त्र 5
    ऋषिः - उशना ऋषिः देवता - अश्विनौ देवते छन्दः - स्वराड्ब्राह्मी बृहती स्वरः - मध्यमः
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    अदि॑त्यास्त्वा पृ॒ष्ठे सा॑दयाम्य॒न्तरि॑क्षस्य ध॒र्त्री वि॒ष्टम्भ॑नीं दि॒शामधि॑पत्नीं॒ भुव॑नानाम्। ऊ॒र्मिर्द्र॒प्सोऽअ॒पाम॑सि वि॒श्वक॑र्मा त॒ऽऋषि॑रश्विना॑ध्व॒र्यू सा॑दयतामि॒ह त्वा॑॥५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अदि॑त्याः। त्वा॒। पृ॒ष्ठे। सा॒द॒या॒मि। अ॒न्तरि॑क्षस्य। ध॒र्त्रीम्। वि॒ष्टम्भ॑नीम्। दि॒शाम्। अधि॑पत्नी॒मित्यधि॑ऽपत्नीम्। भुव॑नानाम्। ऊ॒र्मिः। द्र॒प्सः। अ॒पाम्। अ॒सि॒। वि॒श्वक॒र्मेति॑ वि॒श्वऽक॑र्मा। ते॒। ऋषिः॑। अ॒श्विना॑। अ॒ध्व॒र्यूऽइत्य॑ध्व॒र्यू। सा॒द॒य॒ता॒म्। इ॒ह। त्वा॒ ॥५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अदित्यास्त्वा पृष्ठे सादयाम्यन्तरिक्षस्य धर्त्रीँविष्टम्भनीन्दिशामधिपत्नीम्भुवनानाम्। उर्मिर्द्रप्सोऽअपामसि विश्वकर्मा तऽऋषिरश्विनाध्वर्यू सादयतामिह त्वा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अदित्याः। त्वा। पृष्ठे। सादयामि। अन्तरिक्षस्य। धर्त्रीम्। विष्टम्भनीम्। दिशाम्। अधिपत्नीमित्यधिऽपत्नीम्। भुवनानाम्। ऊर्मिः। द्रप्सः। अपाम्। असि। विश्वकर्मेति विश्वऽकर्मा। ते। ऋषिः। अश्विना। अध्वर्यूऽइत्यध्वर्यू। सादयताम्। इह। त्वा॥५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 14; मन्त्र » 5
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    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. दिगदिगंतरी ज्यांची कीर्ती पसरलेली असते अशा विद्वान पतींना स्वीकारून ज्या स्त्रिया अखंड सुख देतात त्या गृहस्थाश्रमाचे पालन व उन्नती करण्यास समर्थ असतात. तेराव्या अध्यायापासून या मंत्रापर्यंत वसंत ऋतूची व्याख्या प्रामुख्याने केलेली आहे, हे जाणले पाहिजे.

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