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  • यजुर्वेद - अध्याय 25/ मन्त्र 37
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - विद्वांसो देवता छन्दः - स्वराट् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    मा त्वा॒ग्निर्ध्व॑नयीद् धू॒मग॑न्धि॒र्मोखा भ्राज॑न्त्य॒भि वि॑क्त॒ जघ्रिः॑।इ॒ष्टं वी॒तम॒भिगू॑र्त्तं॒ वष॑ट्कृतं॒ तं दे॒वासः॒ प्रति॑ गृभ्ण॒न्त्यश्व॑म्॥३७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा। त्वा॒। अ॒ग्निः। ध्व॒न॒यी॒त्। धू॒मग॑न्धि॒रिति॑ धू॒मऽग॑न्धिः। मा। उ॒खा। भ्राज॑न्ती। अ॒भि। वि॒क्त॒। जघ्रिः॑। इ॒ष्टम्। वी॒तम्। अ॒भिगू॑र्त्त॒मित्य॒भिऽगू॑र्त्तम्। वष॑ट्कृत॒मिति॒ वष॑ट्ऽकृतम्। तम्। दे॒वासः॑। प्रति॑। गृ॒भ्ण॒न्ति॒। अश्व॑म् ॥३७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा त्वाग्निर्ध्वनयीद्धूमगन्धिर्माखा भ्राजन्त्यभि विक्त जघ्रिः । इष्टँवीतमभिगूर्तँवषट्कृतन्तन्देवासः प्रति गृभ्णन्त्यश्वम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    मा। त्वा। अग्निः। ध्वनयीत्। धूमगन्धिरिति धूमऽगन्धिः। मा। उखा। भ्राजन्ती। अभि। विक्त। जघ्रिः। इष्टम्। वीतम्। अभिगूर्त्तमित्यभिऽगूर्त्तम्। वषट्कृतमिति वषट्ऽकृतम्। तम्। देवासः। प्रति। गृभ्णन्ति। अश्वम्॥३७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 25; मन्त्र » 37
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    भावार्थ - हे माणसांनो ! विद्वान लोक जसे मांसाहारी लोकांचे निवारण करून घोडे वगैरे पशूंची वाढ करतात व रक्षण करतात तसे तुम्हीही करा व अग्नी वगैरेपासून त्यांना दूर ठेवा.

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