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  • यजुर्वेद - अध्याय 3/ मन्त्र 23
    ऋषिः - वैश्वामित्रो मधुच्छन्दा ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - विराट् गायत्री, स्वरः - षड्जः
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    राज॑न्तमध्व॒राणां॑ गो॒पामृ॒तस्य॒ दीदि॑विम्। वर्द्ध॑मान॒ꣳ स्वे दमे॑॥२३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    राज॑न्तम्। अ॒ध्व॒राणा॑म्। गो॒पाम्। ऋ॒तस्य॑। दीदि॑विम्। वर्ध॑मानम्। स्वे। दमे॑ ॥२३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    राजन्तमध्वराणाङ्गोपामृतस्य दीदिविम् । वर्धमानँ स्वे दमे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    राजन्तम्। अध्वराणाम्। गोपाम्। ऋतस्य। दीदिविम्। वर्धमानम्। स्वे। दमे॥२३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 3; मन्त्र » 23
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    भावार्थ - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. नमः भरन्तः, धिया, उप, आ, इमसि या सहा पदांची अनुवृत्ती पूर्वीच्या मंत्रातून जाणली पाहिजे. परमेश्वर अनादी सत्य कारणाद्वारे संपूर्ण जगाची रचना करतो व भौतिक अग्नी जलाच्या माध्यमाने सर्व व्यवहार सिद्ध करतो हे माणसांनी जाणले पाहिजे.

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