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  • यजुर्वेद - अध्याय 30/ मन्त्र 20
    ऋषिः - नारायण ऋषिः देवता - राजेश्वरौ देवते छन्दः - भुरिगतिजगती स्वरः - निषादः
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    न॒र्माय॑ पुँश्च॒लू हसा॑य॒ कारिं॒ याद॑से शाब॒ल्यां ग्रा॑म॒ण्यं] गण॑कमभि॒क्रोश॑कं॒ तान्मह॑से वीणावा॒दं पा॑णि॒घ्नं तू॑णव॒ध्मं तान्नृ॒त्ताया॑न॒न्दाय॑ तल॒वम्॥२०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    न॒र्माय॑। पुं॒श्च॒लूम्। हसा॑य। कारि॑म्। याद॑से। शा॒ब॒ल्याम्। ग्रा॒म॒ण्य᳕म्। ग्रा॒म॒न्य᳕मिति॑ ग्राम॒ऽन्य᳕म्। गण॑कम्। अ॒भि॒क्रोश॑क॒मित्य॑भि॒ऽक्रोश॑कम्। तान्। मह॑से। वी॒णा॒वा॒दमिति॑ वीणाऽवा॒दम्। पाणि॒घ्नमिति॑ पाणि॒ऽघ्नम्। तू॒ण॒व॒ध्ममिति॑ तूणव॒ऽध्मम्। तान्। नृ॒त्ताय॑। आ॒न॒न्दायेत्या॑ऽन॒न्दाय॑। त॒ल॒वम् ॥२० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नर्माय पुँश्चलूँहसाय कारिँयादसे शाबल्याङ्ग्रामण्यङ्गणकमभिक्रोशकन्तान्महसे वीणावादम्पाणिघ्नन्तूणवध्मन्तान्नृतायानन्दाय तलवम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नर्माय। पुंश्चलूम्। हसाय। कारिम्। यादसे। शाबल्याम्। ग्रामण्यम्। ग्रामन्यमिति ग्रामऽन्यम्। गणकम्। अभिक्रोशकमित्यभिऽक्रोशकम्। तान्। महसे। वीणावादमिति वीणाऽवादम्। पाणिघ्नमिति पाणिऽघ्नम्। तूणवध्ममिति तूणवऽध्मम्। तान्। नृत्ताय। आनन्दायेत्याऽनन्दाय। तलवम्॥२०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 30; मन्त्र » 20
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    भावार्थ - माणसांनी चेष्टा, उपहास, व्यभिचार इत्यादी दोष सोडून द्यावे व गायन, वादन, नर्तन इत्यादींचे शिक्षण प्राप्त करून आनंदी व्हावे.

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